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सिंगल यूज प्लास्टिक बैन क्यों नहीं हो सकता?

आपको शीर्षक देखकर लग रहा होगा कि हम ये सवाल क्यों पूछ रहे हैं? तो इस सवाल को पूछने के पीछे भी बहुत सारे सवाल है. सवाल ये है कि आखिर इस प्लास्टिक को लेकर इतनी हायतौबा क्यों है? क्या इस प्लास्टिक से कुछ बहुत बुरा हो सकता है? इस प्लास्टिक का विकल्प आखिर क्या है? अगर ये बैन नहीं हो सकता तो फिर इसे बैन करने की क्यों सोची जा रही है? आखिर वे सिंगल यूज प्लास्टिक है क्या बला?

जैसे जीवन की एक शृंखला होती है, वैसे ही इस सिंगल यूज प्लास्टिक की भी है. ये चीज ऐसी सीरीज से जुड़ी है कि अगर इसे उससे हटा दिया जाएगा तो परिणाम कई तरीकों से खराब होंगे. अब आप इसे ऐसे समझिए कि आपको कहा जाए कि आप ऑक्सीजन के बिना रहिए. जी हां! मामला कुछ ऐसा ही है. सिंगल यूज प्लास्टिक हमारी जिंदगी का एक अभिन्न अंग बन चुका है.

हम जो खाना खाते हैं उसकी पैकिंग में होता है ये प्लास्टिक. हम जो पानी पीते हैं, उसकी पैकिंग भी इसी प्लास्टिक से होती है. हम जो कपड़े पहनते हैं उसकी पैकिंग भी इसी प्लास्टिक से होती है. तो जब ये सब कुछ इस प्लास्टिक पर निर्भर है तो हम इसे बैन कैसे करेंगे! यही नहीं, इसके बहुत सारे कारण और हैं आइए उन्हें जानते हैं:

ये बैन नहीं आसां…

सिंगल यूज प्लास्टिक बैन नहीं हो सकता, क्योंकि इससे हमारी अर्थव्यवस्था जुड़ी हुई है. इसे समझने के लिए हमें एक आंकड़े पर गौर करना होगा. अगर सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगा दिया जाता तो इसका असर करीब 10 हजार प्लास्टिक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स पर पड़ेगा. वह तत्काल बंद हो जाएंगी. अगर ऐसा हो तो कम से कम 3-4 लाख लोगों की नौकरी चली जाएगी, जो इन मैन्युफैक्टरिंग यूनिट्स में काम करते हैं. भारत में करीब 50 हजार प्लास्टिक मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं, जिनमें से 90 फीसदी एमएसएमई हैं. अगर सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगाया जाए तो इसका बड़ा असर एफएमसीजी, ऑटो और इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री पर भी पड़ेगा.

परेशानी एक नहीं, हजार है!

और तो और इस बैन से उद्योग जगत सबसे ज्यादा नाराज होगा, क्योंकि उनका सब कुछ इसी सिंगल यूज प्लास्टिक पर निर्भर है. दरअसल बात ये है कि सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त भारत की राह में सबसे बड़ी बाधा शैम्पू, तेल, दूध आदि रोजमर्रा के जरूरत की चीजों की पैकिंग भी है.

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जानकारी के लिए बता दूं कि दुनिया भर में हर मिनट लोग करीब 10 लाख प्लास्टिक की बोतल खरीदते हैं. जितनी प्लास्टिक इस्तेमाल होती है, उनका 91 फीसदी रिसाइकल नहीं होता. एक अनुमान के मुताबिक, हर साल दुनिया भर में करीब 40 हजार करोड़ प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल होता है. उनमें से सिर्फ 1 फीसदी थैलियों की रिसाइक्लिंग होती है. यही नहीं, हर दिन दुनिया भर में करीब 5 लाख स्ट्रॉ का इस्तेमाल होता है. हर दिन करीब 500 अरब प्लास्टिक के प्याले का इस्तेमाल होता है. अब आप खुद ही सोच सकते हैं कि इस प्लास्टिक को बैन करने में क्या दिक्कत आ सकती है!

विकल्प भी है मौजूद

जब समस्या होती है तो उसका कोई ना कोई समाधान भी होता है. ये बात मानने लायक है कि हम सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन नहीं लगा सकते, लेकिन हम इसका उपयोग कम तो कर ही सकते हैं! हम अपनी छोटी-छोटी आदतें बदलकर बहुत कुछ कर सकते हैं. जैसे अगर हम रेस्टोरेंट में खाना खाने जाएं तो हम वहां प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करें. जब बात प्लास्टिक स्ट्रॉ की हो तो उसकी जगह पेपर के बने स्ट्रॉ का इस्तेमाल किया जा सकता है या पूरी तरह से स्ट्रॉ से परहेज किया जा सकता है.

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यहीं नहीं, प्लास्टिक की पानी के बोतलों की जगह शीशा, धातु, कॉपर और सेरामिक की बनी बोतलों का इस्तेमाल करें. ये मार्केट में आसानी से उपलब्ध भी हैं. हम प्लास्टिक के कप की जगह दोबारा इस्तेमाल होने वाले कप लेकर अपने साथ जाएं. ये आदत आपके बहुत काम आएगी. हो सके तो आप पेपर की प्याली भी इस्तेमाल कर सकते हैं. अब सबसे बड़ी समस्या है, प्लास्टिक की थैली. आप इसकी जगह जूट की थैली इस्तेमाल करें. प्लास्टिक की चाकू, चम्मच आदि के स्थान पर आप स्टेनलेस स्टेल की चाकू इस्तेमाल कर सकते हैं.

हमने बताया कि क्यों सिंगल यूज प्लास्टिक बैन नहीं हो सकता. इस बारे में आप अपनी राय हमें कमेन्ट कर जरूर बताएं!