संस्कृत भाषा को सभी भारतीय भाषाओं की जननी कहा जाता है. यह भारत में बोली जाने वाली सबसे प्राचीन भाषाओं में शामिल है. भारतीय संस्कृति का आधार इसी भाषा को माना जाता है. यह हमारे संविधान द्वारा सूचिबद्ध 22 राष्ट्रीय भाषाओं में से एक है. वर्तमान समय में संस्कृत का व्यवहार (Sanskrit Language Day Essay in Hindi) सिर्फ पूजा-पाठ और अकादमी गतिविधियों तक ही सीमित है.
उत्तराखंड राज्य की आधिकारिक भाषा संस्कृत है. भारत के प्राचीन ग्रंथ और वेद की रचना संस्कृत भाषा में ही हुई थी. संस्कृत के बहुत से शब्दों के द्वारा अंग्रेजी के शब्द बने हैं. महाभारत काल में वैदिक संस्कृत का इस्तेमाल किया जाता था. आज संस्कृत देश की कम बोली जानी वाली भाषा बन गई है. लेकिन इस भाषा का महत्व बहुत ज्यादा है क्योंकि इसी भषा से बाकी भाषा की व्याकरण समझ में आती है.
कब मनाया जाता है संस्कृत दिवस? Sanskrit Diwas in hindi
भारतीय कैलेंडर के अनुसार संस्कृत दिवस का पालन सावन महीने की पूर्णिमा के दिन किया जाता है. यानी रक्षा बंधन और संस्कृत दिवस दोनों एक ही दिन होता है. संस्कृत दिवस की शुरुआत साल 1969 में हुई थी. वैदिक भाषा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संस्कृत दिवस के दिन विभिन्न गतिविधियों, संगोष्ठी व कार्यशालाओं का आयोजन होता है.
क्यों मनाया जाता है संस्कृत दिवस? – Sanskrit Diwas
इस दिवस का पालन पूरी दुनिया में किया जाता है. इस दिवस का पालन करने का मुख्य लक्ष्य है कि संस्कृत भाषा को अधिक से अधिक बढ़ावा मिल सके. हमारी नई पीढ़ी को इस भाषा के बारे में पता चल सके और वे इसका ज्ञान हासिल कर सकें. अभी के लोगों की सोच है कि संस्कृत पुराने जमाने की भाषा है और यह समय के साथ-साथ और भी पुरानी हो गई है. आम लोगों की इसी सोच में परिवर्तन के उद्देश्य से संस्कृत दिवस का पालन किया जाता है.
संस्कृत भाषा का महत्व – Importance of Sanskrit Language
संस्कृत बहुत ही खूबसूरत भाषा है जो हमारे समाज को आज से नहीं बल्कि सालों से समृद्ध बना रही है. यह भाषा हमारी संस्कृति के विरासत का प्रतीक है. संस्कृत ऐसी कुंजी है जो हमारे प्राचीन ग्रंथों में और हमारी धार्मिक-सांस्कृतिक परंपराओं के बहुत सारे रहस्यों को जानने में मदद करती है. भारतीय इतिहास में सबसे अधिक शिक्षाप्रद सामग्री, शास्त्रीय भाषा संस्कृत में ही रचित है. वैदिक संस्कृत का अध्ययन करने से हमें मानव इतिहास के बारे में जानने और समझने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है. यह भाषा प्राचीन सभ्यता को रौशन करने में भी पूरी तरह सक्षम है. अध्ययन में यह भी पता चला है कि संस्कृत हमारे कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए सबसे बेहतर विकल्प है.
आज के युग में संस्कृत की महत्ता – Sanskrit for Modern Age
दुनिया में हम विदेशियों के योगदान को अधिक महत्व देते हैं. इसकी वजह है कि इन्हीं के माध्यम से संस्कृत में निहित साहित्य की जानकारी पूरी दुनिया के सामने आई है. साल 783 में सर विलियम जॉन ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर कलकत्ता पहुंचे थे. ये अंग्रेजी भाषाविद, संस्कृत में विद्वान होने के साथ-साथ एशियाटिक सोसायटी के संस्थापक थे. विलियम जॉन ने कालिदास द्वारा संस्कृत भाषा में लिखि कहानी अभिज्नना शकुंतला व रितु संहार का अंग्रेजी में अनुवाद किया था.
कवि जयदेव द्वारा रचित ‘गीता गोविंदा’ व मनु के कानून ‘मनुस्मृति’ को भी इन्होंने अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया था. सन् 1785 में एक अन्य विद्वान सर चार्ल्स विल्किंस ने ‘श्रीमद भगवत गीता’ का अंग्रेजी में ट्रांसलेट किया था. एक जर्मन भाषाविद मैक्स मुलर ने हितोपदेश भारतीय दंतकथाओं के संग्रह को संस्कृत से जर्मनी भाषा में ट्रांसलेट किया था. उन्होंने अपना नाम भी परिवर्तित करके संस्कृत में ‘मोक्ष मुलर भट’ कर लिया था.
उनका अपना नाम बदलना संस्कृत के प्रति लगाव को दर्शाता है. कालिदास द्वारा रचित ‘मेघदूत’ को जर्मनी में लिखने के बाद उसे ‘दी फेटल रिंग’ नाम दिया. इन सबके अलावा उन्होंने ऐसी बहुत सारी प्राचीन धार्मिक रचना का संपादन कर उसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में 1879 से 1884 के दौरान प्रकाशित किया था.
कैसे होता है संस्कृत दिवस का पालन? – Sanskrit Day Celebration
संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए सरकार अपने द्वारा आयोजित कार्यक्रम से स्कूल व कॉलेजों को भी जोड़ती है. स्कूल कॉलेज में विभिन्न तरह के कार्यक्रम होते हैं. सभी स्कूलों में संस्कृत भाषा में निबंध, वाद-विवाद, श्लोक, गाना व पेंटिंग की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. कई सारे मंदिरों और सामाजिक संस्थानों में भी इस दिन कार्यक्रम होते हैं. संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार कर इसे बढ़ावा देने के लिए इसकी रचना, श्लोक व किताबें आदि लोगों में बांटी जाती है.
भारत में अभी भी बहुत सारे लोग संस्कृत भाषा में पढ़ाई करते हैं. भारत में सबसे पहला संस्कृत विश्वविद्यालय साल 1791 में वाराणसी में खुला था. भारत में अभी कुल 14 संस्कृत विश्वविद्यालय है. देश-विदेश के बहुत सारे कॉलेजों में संस्कृत पाठ्यक्रम के लिए अलग विभाग होता है. यहां से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन करने वालों की संख्या भी बहुत है. संस्कृत जो कि भारत देश का गौरव है, उसे बढ़ावा व उसका हक जरूर मिलना चाहिए.