कभी-कभी तो लगता है अपुन इच भगवान है…बाप का, भाई का, दादा का सबका बदला लेगा रे तेरा फैजल…ये डायलॉग तो सुना ही होगा आपने. अगर डायलॉग आप जानते हो तो डायलॉग बोलने वाले एक्टर को भी जानते ही होंगे. जी हां, ये एक्टर हैं हमारे और आपके सबके फेवरेट नवाजुद्दीन सिद्दीकी!
आज की डेट में नवाजुद्दीन का सिक्का बॉलीवुड से लेकर वेब सीरीज तक सब में चल रहा है. अगर दूसरी भाषा में कहें तो नवाज के सितारे आजकल बुलंद हैं. और सितारे बुलंद होने के पीछे की वजह है उनका दूसरे एक्टरों से बहुत अलग होना. वो न सिर्फ अपनी एक्टिंग में बादशाहत रखते हैं बल्कि अपनी निजी जिंदगी भी एक बादशाह की तरह जीते हैं.
बहुत से लोग पैसा कमाने के बाद अपना पुराना वक्त भूल जाते हैं लेकिन इनके साथ ये बात बिल्कुल भी नहीं है. नवाज आज भी डाउन टू अर्थ ही हैं. उन्हें अपनी मातृभूमि से प्यार है. वो खाली वक्त में खेती-किसानी भी करते हैं. और भी ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो नवाज को दूसरे एक्टरों से अलग करती है. तो आइए जानते हैं कि आखिर नवाज क्यों हैं इतने अलग?
मातृभूमि से प्यार है इनको – Nawazuddin Siddiqui
जब कोई एक्टर बुलंदी पर पहुंच जाता है तो वो अपनी असली जमीन भूल जाता है लेकिन नवाज के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं है. नवाज को कामयाबी मिलने के बाद भी अपने गांव अपनी मातृभूमि से बहुत प्यार है. इसका खुलासा भी उन्होंने खुद ही किया है. एक इंटरव्यू में नवाजुद्दीन सिद्दकी से पूछा गया कि वो कुछ ही अंतराल में दो अलग-अलग कैरेक्टर में अपने आप को कैसे ढालते हैं? तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि एक फिल्म के बाद जब उन्हें दूसरी फिल्म करनी होती है तो वो ब्रेक लेते हैं.
ब्रेक लेने के बाद वो उस दौरान अपने गांव जाते हैं. वहां खेती-किसानी करते हैं. अपने घर के लोगों के साथ वक्त बिताते हैं. इस दौरान उनका मन पूरी तरह से बदल जाता है और वो अपने दूसरे कैरेक्टर के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं. नवाज कितने सिंपल हैं इसका एक उदाहरण और देखिए. साल 2016 की बात है. उन्होंने इंस्टाग्राम पर पुराने चप्पलों की तस्वीर शेयर की. उन्होंने लिखा कि इन चप्पलों को देखकर अपना बीता हुआ कल याद आ जाता है. इन जैसी पुरानी चप्पलों में ही मेरा बचपन गुजरा है. ये बात उस दौरान की है जब वो रमन राघव फिल्म की शूटिंग कर रहे थे.
सफलता के पीछे है कड़ा संघर्ष – Nawazuddin Siddiqui
कोई भी एक्टर बिना घसे हीरा नहीं बनता. सबको मुकाम पाने के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है. हर किसी की कहानी अलग-अलग भी होती है. आप नवाज की कहानी सुनिए. यकीन मानिए, आप इस कहानी को सुनकर बोल पड़ेंगे कि बहुत लोगों का संघर्ष देखा लेकिन नवाज जैसा संघर्ष किसी का नहीं है. ये बात 1992 की है जब नवाज दिल्ली आए. यहां उन्हें काम चाहिए था. जीने के लिए पैसा चाहिए था. इसलिए उन्होंने चौकीदार तक की नौकरी की.
शरीर से दुबले पतले नवाज को ये काम जमा नहीं. लिहाजा उन्होंने नौकरी छोड़ दी. नाटक देखने के नवाज शुरू से शौकीन थे सो दिल्ली में भी देखने लगे. उन्हें फिर एनएसडी के बारे में पता चला. वो वहां भी पहुंचे. धीरे-धीरे नुक्कड़ नाटकों में भाग लेने लगे. उलझन नाम के नाटक में उन्हें एक पेड़ का रोल मिला. पेड़ के रोल में वो दोनों हाथों को पेड़ की तरह फैलाए 2 घंटे तक खड़े रहे. इसके बाद उन्हें पेप्सी कंपनी के एक विज्ञापन में काम करने का मौका मिला. नवाज को इसके लिए पैसे मिले 500 रुपये. इसके बाद नवाज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा!
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अच्छी फिल्मों का चुनाव – Nawazuddin Siddiqui
नवाज को आज ऐसे ही इतना पसंद नहीं किया जाता है. इसके पीछे की एक वजह उनकी फिल्मों का चुनाव भी है. भले ही आज लोग पैसों के लिए फिल्में साइन करते हों लेकिन नवाज ऐसा नहीं सोचते. वो हमेशा सोच समझकर स्क्रिप्ट का अध्ययन करने के बाद ही फिल्म में काम करने का निर्णय लेते हैं. यही कारण है कि 1999 में सरफरोश फिल्म से अपना डेब्यू करने वाले नवाज ने आजतक लगभग 52 फिल्में ही की हैं.
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अगर बात उनकी फिल्मों की करें तो कहानी फिल्म में उनकी एक्टिंग ऐसी थी कि जिसकी तारीफ बड़े-बड़े फिल्म क्रिटिक्स ने की. गैंग्स ऑफ वासेपुर अगर हिट हुई है तो वो नवाज की एक्टिंग की वजह से. गमछा पहने उनका लुक लोगों को खूब पसंद आया. आज सेकरेड गेम्स की 2 सीरीज आ चुकी है. इन सीरीजों में उन्होंने कैसी एक्टिंग की वो पूरी दुनिया जानती है. उनके डायलॉग्स लोग रट चुके हैं.
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