शुरुआत कुछ यूं रही – Munshi Premchand Biography
31 जुलाई सन 1880 में देवताओं का शहर कहे जाने वाली काशी से कुछ दूर लमही नाम के गांव में मुंशी प्रेमचंद का जन्म हुआ. वो शुरू से ही कुशल बुद्धि के थे. पढ़ने-लिखने में बहुत तेज! गांव में ही उन्होंने हंसते-खेलते अपना जीवन गुजारा. गांव प्रेमचंद को बहुत प्यारा था, इसलिए उन्होंने अपने अंदर ही इसे बसा लिया. सबसे गौर करने वाली बात ये रही कि गरीबी नाम के राक्षस ने उनका रास्ता कई बार रोकने की कोशिश की. प्रेमचंद गरीबी से लगातार लड़े और अपनी मैट्रिक की परीक्षा पूरी की.
इसी बीच उनके जीवन में एक बहुत बड़ा मोड़ आया. उनके पिता ने उनका साथ छोड़ दिया. इस मुश्किल घड़ी में भी वो हताश नहीं हुए. उन्होंने इसके बाद इलाहाबाद का रुख किया. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उन्होंने दाखिला लिया. यहां उन्होंने इतिहास, अंग्रेजी और पर्सियन जैसी भाषा में स्नातक की उपाधि हासिल की.
साहित्य से ऐसे जुड़े – Munshi Premchand Biography
प्रेमचंद ने पढ़ाई-लिखाई के बाद सरकारी नौकरी हासिल की. वो नौकरी तो कर ही रहे थे साथ ही में उन्होंने लिखना भी शुरू कर दिया. बहुत कम लोग जानते हैं कि मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था. वो पहले खुद को नवाब राय बुलवाना पसंद करते थे. उन्होंने सोजे-वतन नाम की कहानी ब्रिटिश काल में लिखी जो अंग्रेजी हुकूमत की आंखों में गड़ने लगी. इसके बाद उन्होंने नवाब राय नाम हटवा लिया और कहानियों पर प्रेमचंद नाम अंकित होने लगा.
प्रेमचंद ने उपन्यास से लेकर कहानी तक, नाटक से लेकर समीक्षा तक, लेख से लेकर संपादकीय तक सबकुछ लिखा है. अगर आंकड़ों पर जाएं तो प्रेमचंद के नाम कुल 15 उपन्यास, 300 से ज्यादा कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें और हज़ारों पन्नों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र की रचनाएं शामिल हैं.
कहानियों में गांव को दिया स्थान
जैसा हमने पहले बताया था कि प्रेमचंद को गांव से बहुत ज्यादा लगाव था. इसलिए ही उन्होंने अपनी कहानियों में भी गांव को बखूबी जगह दी. उन्होंने गोदान लिखी जिसमें गांव की खुशबू आती है. प्रेमाश्रम और सवा शेर गेहूं में भी गांव-देहात की झलक साफ देखी जा सकती है. ‘कफन’ और ‘ठाकुर का कुआं’ भी इसकी तासीर करते हैं. प्रेमचंद के हर उपन्यास में गांव की मिट्टी, भाषा, रहन-सहन, सामाजिक ढांचे की छुअन थी.
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बहुत याद आएंगे प्रेमचंद – Munshi Premchand Biography
प्रेमचंद की पत्नी और बेटे ने उनके नाम से जीवनी लिखी है, जिसमें उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलू हैं. प्रेमचंद की धर्म पत्नी शिवरानी देवी ने ‘प्रेमचंद घर में’ नाम से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया, जिससे लोग अनजान थे. उनके बेटे अमृत राय ने ‘क़लम का सिपाही’ नाम से जीवनी लिखी. ये सब एक अच्छी कोशिश में गिनी जा सकती है. वहीं उनकी याद में भारतीय डाक विभाग की ओर से 31 जुलाई, 1980 को उनके जन्मदिन के मौके पर 30 पैसे कीमत का एक डाक टिकट जारी किया गया. गोरखपुर के जिस स्कूल में वो पढ़ाया करते थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई. यहां उनसे जुड़ी चीजों का एक संग्रहालय भी है.