फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले! ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले! सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है, दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है!…इन पंक्तियों में एक बहुत बड़ा संदेश है. संदेश है अंतर का, अंतर लोगों के बीच. भारत देश आज एक आजाद मुल्क है. देश किन परिस्थितियों में आजाद हुआ, इसमें किसने-किसने योगदान दिया ये सभी जानते हैं. हम इसमें कवियों के योगदान को भी नहीं भूल सकते. एक नहीं बल्कि कई कवियों ने अपनी कलम की ताकत से अंग्रेजों (Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi) को ललकारा. साथ ही भारतीय लोगों के स्वाभिमान को भी मजबूत किया. इन्हीं में से एक थे उपरोक्त कविता की पंक्तियां लिखने वाले रामधारी सिंह दिनकर.
रामधारी सिंह का जीवन ऐसा था जिसे कोई एक बार जान ले तो प्रेरणा से भर जाए. उन्होंने घनघोर गरीबी से लेकर बुलंदियों तक का सफर किया. किस तरह का संघर्ष उन्होंने किया? कैसे रामधारी जी के अंदर का कवि जागा? कैसे उन्होंने सरकारी नौकरी हासिल की? आइए इन्हीं सवालों के जवाब जानने की कोशिश करता हूं!
दिनकर का बचपन – Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi
एक बहुत ही गरीब परिवार में 23 सितंबर 1908 को रामधारी सिंह का जन्म हुआ. जन्म की जगह थी बिहार के बेगूसराय जिले का सिमरिया गांव. रामधारी सिंह भाइयों में मंझले थे. उन्हें पढ़ने-लिखने का बहुत ही शौक था. साधन सीमित थे लिहाजा पढ़ना-लिखना संभव नहीं हो पाता. दिलचस्प बात है कि उनके दोनों भाइयों ने मिलकर तय किया कि रामधारी को पढाएंगे और इसके लिए जो होगा प्रयास किया जाएगा. यही कारण रहा कि रामधारी सिंह दिनकर गरीबी के बावजूद परिवार की इच्छा से पढ़ सके.
ना चाहते हुए भी करनी पड़ी नौकरी – Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi
मैट्रिक तक की पढ़ाई रामधारी सिंह ने गांव में ही रहकर की और इसके बाद वो पटना चले गए. यहां पटना यूनिवर्सिटी में एडमिसन लेकर उन्होंने बीए किया. पढ़ाई तो अच्छे से पूरी हुई, अब तलाश थी एक अच्छी सी नौकरी की. पेट चलाने के लिए यही एक मात्र साधन जो था. जब तक रामधारी जी की नौकरी नहीं लगी थी तब तक वो कलम के माध्यम से अंग्रेजी हुकूमत पर प्रहार करते थे. अब वक्त आंदोलन करने का आ चुका था. इसी दौरान जाने अनजाने में रामधारी जी का साहित्य प्रेम बढ़ने लगा. उनकी कविताओं में विद्रोह की ज्वाला दिखने लगी.
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घर की तंगी को देखते हुए रामधारी जी अंग्रेजी शासन की नौकरी करने का फैसला किया. नौकरी लगी बिहार सरकार में लेकिन उन्होंने कलम की धार को कमजोर ना होने दिया. लेखनी के माध्यम से अंग्रेजों के खिलाफ अपना विद्रोह जताते रहे. उनकी ये बात अंग्रेजों को हजम नहीं हो रही थी लिहाजा 4 साल की नौकरी में ही रामधारी जी को 22 बार तबादलों का मुंह देखना पड़ा. आखिर में उन्होंने 1945 में नौकरी छोड़ दी. नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने कुरुक्षेत्र लिखी. ये किताब अंग्रेजों के लिए नासूर बनकर उभरी.
राजनीति में लाए चाचा नेहरू – Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi
जवाहरलाल नेहरू और रामधारी जी काफी करीबी थे. इन नजदीकियों की वजह थी रामधारी जी की वीर रस की कविताएं. इसी करीबी के कारण नेहरू उन्हें राजनीति में लेकर आए. 1952 में उन्हें राज्यसभा सांसद मनोनीत किया गया. 1964 तक वो लगातार तीन बार सदन के सदस्य रहे. अपनी कलम की धार ने ही रामधारी जी को ‘दिनकर’ का तमगा दिया.
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साहित्य और पुरस्कार
गद्य और पद्य मिलाकर 150 से ज्यादा रचनाएं आज भी रामधारी जी की हमारे बीच है. अपनी रचना उर्वशी के लिए 1972 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वहीं संस्कृति के चार अध्याय के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी उन्हें दिया. वो भागलपुर विश्वविद्यालय के उप-कुलपति भी बने. साथ ही दिनकर जी ने भारत सरकार के हिंदी सलाहकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दी. तमिलनाडु में अंत के दिनों में शांति मुद्रा में वो स्वर्ग को सिधार गए. उनका स्वर्गवास 65 साल की उम्र में 24 अप्रैल 1974 को हुआ.