मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के इतिहास के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इनका “भारत भारती” कृति काफी प्रभावशाली साबित हुआ था. इस कृति से प्रभावित होकर ही महात्मा गांधी से इन्हें साल 1932 में राष्ट्रकवि (Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi) की उपाधि मिली थी. गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त 1866 में उत्तर प्रदेश के झाँसी के चिरगावं में हुआ था. इनके पिता अच्छे कवि और भगवद भक्त भी थे. इनके पिता सेठ राम चरण जी और माता कौशिल्या बाई दोनों ही वैष्णव धर्म को मानते थे. पिता से प्रेरित होकर गुप्त जी में बाल्यावस्था से ही काव्य में रूचि आ गयी थी.
मैथिलीशरण जी की प्रारंभिक पढ़ाई गांव में ही प्रारम्भ हुई थी. कक्षा 3 तक गांव में पढ़ने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने झाँसी के मेक्डोनल हाई स्कूल में एडमिशन लिया. स्कूल में दाखिला लेने के बावजूद पढ़ाई में इनकी रूचि ना के बराबर थी. यानी पढ़ाई में इनका मन बिल्कुल नहीं लगता था. वे हमेशा अपने कुछ दोस्तों की मंडली बनाकर घुमा करते और लोक-कला, लोकनाटक व लोकसंगीत भी किया करते थे. पढाई में रूचि नहीं होने से परेशान घर वाले इन्हे वापस बुला लिए. घर वाले जब भी इनसे पढ़ाई के बारे में पूछते तो इनका बस एक ही जवाब होता, कि “मैं दूसरों की किताब क्यों पढू? जब मैं किताब लिखूंगा तब दूसरे लोग पढ़ेंगे।“ इस उत्तर से लोगों को हैरानी तो होती थी लेकिन यह बात सत्य हुई. अपनी कविता से प्रसिद्ध होने पर वे राष्ट्रकवि की उपाधि से सम्मानित हुए थे.
लेखक के रूप में मैथिलीशरण गुप्त – Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi
इनकी पढ़ाई तो अधूरी रह गई थी लेकिन मैथिलीशरण जी ने घर पर ही हिंदी, बांग्ला व हिंदी साहित्य के इतिहास का अध्ययन किया था. इसके अलावा धर्म ग्रन्थ श्रीमद्भागवत गीता, रामायण और महाभारत का भी अध्ययन किया था. मात्र 12 वर्ष की उम्र में मुंशी अजमेरी के मार्गदर्शन में इन्होंने ब्रज भाषा में कविता लिखा शुरू कर दिया था. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी से मुलाकात के बाद द्विवेदी जी ने इनकी कविताएं सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित करना आरंभ किया था. इसके बाद इनका पहला काव्य संग्रह “रंग में भेद” और दूसरा “जयद्रथ वध” भी प्रकाशित हुआ.
इन्होंने बांग्ला काव्यग्रंथ “मेघनाथ वध” का ब्रज भाषा में अनुवाद किया था. साल 1912 में सेनानी संग्राम से प्रेरित होकर गुप्त जी द्वारा राष्ट्रीय भावना से लिखे गए “भारत भारती” का प्रकाशन हुआ. “भारत भारती” ने उन्हें पूरे देश में लोकप्रिय बनाया. संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रन्थ “स्वप्नवासवदत्ता” का भी इन्होंने अनुवाद किया है. मैथिलीशरण जी ने “साकेत” और “पंचवटी” जैसे लेख भी लिखे हैं. इनके काव्य में मूल रूप से राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता रही है. गुप्त जी के काव्य में पारिवारिक जीवन और नारी मात्र को विशेष महत्त्व दिया गया है.
सत्याग्रह आंदोलन की वजह से वे एकबार जेल भी गए थे. सन 1953 में इन्हें भारत सरकार द्वारा “पद्मभूषण” से नवाजा गया था. मैथिलीशरण जी 1952-64 तक राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं. गुप्त जी को हिन्दू विश्वविधालय समेत कई और विश्वविधालयों से डी० लिट० की उपाधि मिली हुई है.
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा लिखी गई कुछ रचनाएं:
रंग में भेद, जयद्रथ बध, पंचवटी, भारत भारती, साकेत, यशोधरा, हिन्दू, नहुष आदि.
मैथिलीशरण गुप्त जी को बड़े ही संघर्ष और अपने कठिन परिश्रम के बाद अपने जीवन में यश प्राप्त हुआ और वे भारत के राष्ट्रकवि कहे जाने लगे. 29 मार्च 1963 को अपने छोटे भाई सियारामशरण गुप्त के निधन से वे सदमा में रहने लगे. करीब एक साल बाद 7 दिसंबर 1964 को वे अपने घर चिरगांव लौट आये. इसके बाद 12 दिसंबर 1964 को दिल का दौरा पड़ने से इनकी मौत हो गयी.