वह तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार पेड़
वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार
श्याम तन, भर बंधा यौवन
नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन
गुरु हथौड़ा हाथ
करती बार-बार प्रहार
सामने तरू-मालिका अट्टालिका प्राकार
कहते हैं जीवन में बहुत कुछ करने के लिए किसी का सहयोग होना जरूरी होता है. कभी-कभी लोग किसी के सहयोग की बदौलत वो काम कर जाते हैं जो काम उन्होंने कभी जिंदगी में भी नहीं सोचा था. ऐसा ही कुछ जीवन रहा है, ऊपर लिखी गई पक्तियों के रचनाकार सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi) का. सूर्यकांत कभी भी रचनाकार बनना नहीं चाहते थे, उनका मन दूसरे कामों में ज्यादा लगता था लेकिन उनकी जिंदगी में एक शख्स ने आकर सब कुछ बदल दिया. आखिर कौन था वो शख्स, आखिर कैसा था उनका पूरा जीवन आइए जानते हैं!
शुरू में ही पड़ गया बोझ – Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi
वो दिन था एकादशी का तारीख थी 21 फरवरी और साल था 1896 का…जब पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर में जन्म हुआ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का. वो रविवार को जन्मे थे इसलिए उन्हें लोग सूर्जकुमार भी कहते थे. पिता सरकारी नौकरी में थे, लिहाजा कोई बड़ी दिक्कत परिवार में नहीं थी. लेकिन उनकी जिंदगी तब बदल गई जब वो सिर्फ 3 साल के थे. इतनी कम उम्र में ‘निराला’ जी के सिर से मां का साया उठ गया. इसके बाद उनके पिता पंडित रामसहाय ने उन्हें संभाला. निराला का जन्म बंगाल में हुआ था, लिहाजा उनके साहित्य में भी इसका अच्छा-खासा प्रभाव दिखता है, वो बंगाल को छोड़कर बाद में यूपी में बस गए लेकिन बंगाल उनके अंदर तक बस चुका था.
पढ़ने से ज्यादा इन कामों में लगता था मन – Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi
निराला की शुरूआती शिक्षा का माध्यम बांग्ला भाषा रही. इसके बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत और अंग्रेजी भाषा सिखी. बहुत कम लोगों को पता है कि ‘दर्शन’ से उनका लगाव मैट्रिक में ही हुआ. हालांकि पढ़ाई से ज्यादा रूचि निराला को अन्य कामों में थी. वो खेलने, घूमने और कुश्ती लड़ने में ज्यादा मन लगाते. कहते हैं कि सूर्यकांत को रामचरित मानस बहुत प्रिय था, वो हमेशा इसका अध्ययन करते हुए पाए जाते थे. संगीत से भी उन्हें खूब लगाव था.
ऐसे आया जीवन में मोड़ – Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi
जब सूर्यकांत सिर्फ 15 साल के थे तब उनकी शादी मनोहरा देवी से हो गई. रायबरेली में डलमऊ के पंडित रामदयाल की बेटी मनोहरा शिक्षित थीं, उनको संगीत का अभ्यास भी था. पत्नी के ज़ोर देने पर ही उन्होंने हिन्दी सीख ली. इसके बाद बहुत जल्द ही उन्होंने बांग्ला के बजाय हिन्दी में कविताएं लिखनी शुरू कीं. सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो तब हुआ जब 20 साल की उम्र में उनकी पत्नी भी उन्हें छोड़कर स्वर्ग सिधार गईं. पत्नी के जाने के गम के साथ-साथ पैसों का अभाव भी उन्हें परेशान करता रहा. ऐसे मुश्किल वक्त में उन्होंने कई प्रकाशकों के साथ प्रूफ रीडर के रूप में काम करने का फैसला किया. पिता जी भी बहुत ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाए, लेकिन सूर्यकांत ने सबकुछ सहा और जीवन में आगे बढ़ते रहे.
‘निराला’ जी और उनकी रचनाएं – Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi
‘निराला’ जी की रचनाओं में अनेक तरह के भाव देखने को मिलते हैं. वो तरह-तरह की भाषाओं में कविता लिखने में निपुण थे. आध्यात्म, देशप्रेम और रूढ़िवाद सबकुछ उनकी रचनाओं में दिखाई पड़ता था. एक गरीब पर उन्होंने कुछ पक्तियां लिखी हैं जो कि बहुत कुछ बयां करती हैं-
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को
भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली को फैलाता
दो टूक कलेजे के करता पछताता
यही नहीं बल्कि सौ पदों में लिखी गयी ‘तुलसीदास’ निराला की सबसे बड़ी कविता है, ये 1934 में लिखी गयी और 1935 में सुधा के पांच अंकों में किस्तवार इसका प्रकाशन हुआ. अगर उनकी कविता संग्रह की बात करें तो इसमें परिमल, अनामिका, गीतिका, कुकुरमुत्ता, आदिमा, बेला, नये पत्त्ते, अर्चना, आराधना, तुलसीदास और महाभारत प्रमुख रूप से शामिल है. वहीं अगर कहानी संग्रह की बात करें तो इसमें चतुरी चमार, शुकुल की बीवी, सखी, लिली देवी, आलोचना, बंगभाषा का उच्चरन, चाबुक, चयन, संघर्ष शामिल है. 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद में उनका निधन हो गया. वो चले गए लेकिन उनकी रचनाएं आज भी हम सबके बीच में ताजा हैं.