भारत देश शुरू से ही ऋषि-मुनियों और संतों का देश रहा है. इस धरती पर एक नहीं बल्कि अनेकों महावीर और पराक्रमियों ने जन्म लेकर इसे गौरवान्वित किया है. यही कारण है कि भारत को सोने की चिड़िया और विश्व गुरु आदि नामों से भी संबोधित किया जाता है. आदिकाल से ही भारत की भूमि पर ऐसे ऐसे महाकाव्यों की रचना हुई है, जिसकी कोई तुलना नहीं कर सकता.
भारतीय ग्रंथों के समानांतर और कोई साहित्य भी नहीं है. हमारे देश को गौरवान्वित करने वाले तमाम विद्वानों में एक नाम महर्षि वाल्मीकि का भी आता है. इन्होंने रामायण नामक ग्रंथ की रचना की थी. इस रचना को ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी पढ़ा जाता है.
महर्षि वाल्मीकि बहुत बड़े विद्वान पंडित के रूप में प्रतिष्ठित हैं. इन पर अचानक ही ज्ञान की देवी सरस्वती की कृपा होती है. जिसके तुरंत बाद उनके जिह्वा से संस्कृत के श्लोक प्रस्फुट होने लगते हैं. ब्रह्मा जी के निवेदन पर बाल्मीकि जी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन से जुड़ा महाकाव्य लिखने के लिए प्रेरित हो जाते हैं. रामायण महाकाव्य मर्यादित समाज व आत्म संयम, परिवार और समाज के निर्माण की शिक्षा देता है.
कौन थे महर्षि वाल्मीकि – Maharshi Valmiki Biography in Hindi
वाल्मीकि जी का नाम पहले रत्नाकर था. वास्तव में वे प्रचेता के पुत्र थे और पुराण के अनुसार प्रचेता ब्रह्मा जी के पुत्र थे. बचपन में एक भीलनी ने रत्नाकर को चुरा लिया था. यही कारम है कि उनका पालन पोषण जंगल में रहने वाली भील जाति में हुआ था. यही वजह थी कि उन्होंने भीलों की परंपरा को अपनाया और आजीविका के लिए डाकू बन गए. परिवार का पालन-पोषण करने के लिए वे राहरीगों को लुटते थे. सिर्फ लुटना ही नहीं बल्कि जरूरत पड़ने पर मार भी देते थे.
वाल्मीकि जी के जीवन से जुड़ी रोचक घटना
वाल्मीकिजी का व्यक्तित्व साधारण नहीं था और उनके जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है. अपने जीवन की एक घटना से प्रेरित होकर उन्होंने अपना जीवन पथ ही बदल दिया. जिसके फलस्वरूप वे महान कवियों की श्रेणी में शामिल हो गए.
एक दिन नारद मुनि उनके जंगल से निकल रहे थे. तभी रत्नाकर ने उन्हें बंदी बना लिया. नारद मुनि ने उनसे पूछा कि तुम ऐसा पाप क्यूं कर रहे हो? तो रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार को पालने के लिए. अब नारद जी ने उनसे पूछा कि तुम जिस परिवार के लिए यह पाप कर रहे हो क्या वो परिवार तुम्हारे पापों का फल वहन करेगा? इसका उत्तर देते हुए रत्नाकर ने कहा कि हां जरूर करेगा क्यूंकि मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ है.
फिर नारद जी ने कहा कि एक बार पूछ लो, अगर वे हां बोलते हैं तो मैं सारा धन तुम्हें दे दूंगा. रत्नाकर ने जब अपने परिवार से पूछा तो किसी ने भी हामी नहीं भरी. इसका रत्नाकर पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने डकैती का पेशा छोड़ कर तप का मार्ग चुन लिया.
इसके बाद उन्होंने काई सालों तक ध्यान व तपस्या में लीन रहे. जिसके बाद उन्हें महर्षि वाल्मीकि नाम व ज्ञान की प्राप्ति हुई. इसके बाद ही उन्होंने संस्कृत भाषा में रामायण महाकाव्य की रचना की. यानी जीवन की एक घटना ने डाकू रत्नाकर को महान रचयिता महर्षि वाल्मीकि बना दिया.
रामायण लिखने की प्रेरणा – Maharshi Valmiki Biography in Hindi
रत्नाकर को जब अपने पापों का आभास हुआ तो उन्होंने उस पापी जीवन का त्याग कर एक नया पथ अपना लिया. अब समस्या थी कि इस नए पथ के बारे में उन्हें ज्ञान नहीं था. इन नए पथ का मार्ग उन्होंने नारद जी से पूछा. नारद जी से उन्हें राम नाम जप करने की सलाह मिली. रत्नाकर बहुत लंबे समय तक राम नाम जपते रहे लेकिन अज्ञानता के कारण भूलवश उनके राम राम का जप मरा मरा में बदल गया.
इस कारण इनका शरीर दुर्बल हो गया और उस पर चीटियाँ लग गई. कहा जाता है कि शायद यही उनके पापों का भोग था. इसी वजह से उनका नाम वाल्मीकि पड़ा. लेकिन अपनी कठिन साधना से उन्होंने ब्रह्म देव को प्रसन्न कर लिया. इसके फलस्वरूप ब्रम्हदेव ने इन्हें ज्ञान देकर रामायण लिखने का सामर्थ्य दिया. फिर वाल्मीकि महर्षि ने रामायण की रचना की क्यूंकि इन्हें रामायण का पूर्व ज्ञान था.
वाल्मीकि जयंती – Maharshi Valmiki Jayanti in Hindi
वाल्मीकि जी का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था. हिन्दू धर्म कैलेंडर में इस दिन कोवाल्मीकि जयंती कहा जाता है.
वाल्मीकि जी के पहले श्लोक की रचना – Maharshi Valmiki Biography in Hindi
वाल्मीकि जी एक बार तपस्या के लिए गंगा नदी के तट पर गए. वहीं पास में पक्षी का नर नारी का एक जोड़ा प्रेम में था. तभी एक शिकारी ने तीर मार कर उस नर पक्षी की हत्या कर दी. इस दृश्य को देख कर उनके मुख से अपने आप ही श्लोक निकल पड़ा जो इस प्रकार था-
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥
अर्थात: जिस दुष्ट ने यह घृणित कार्य किया, उसे जीवन में कभी भी सुख भोग नहीं होगा. क्यूंकि उस दुष्ट ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया है. इसके बाद ही महाकवि ने रामायण महाकाव्य की रचना की.