मौलाना अबुल कलाम आजाद एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान के अलावा कवि और पत्रकार भी थे. इनका असली नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था. ये आजाद भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे. अबुल कलाम (Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi) अरबिक, इंग्लिश, हिंदी, उर्दू, पर्शियन और बांग्ला भाषा के अच्छे जानकार थे.
धर्म के एक संकीर्ण दृष्टिकोण से मुक्ति पाने के उद्देश्य से उन्होंने अपना उपनाम “आजाद” कर लिया था. स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आजाद ही बने थे. देश के विकास में इनका अमूल्य योदगान था. इसलिए साल 1992 में इन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था.
जन्म – Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi
शिक्षा – Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi
इनके परिवार की पृष्ठभूमि रूढ़ीवादी होने की वजह से इन्हें परंपरागत इस्लामी शिक्षा का ही अनुसरण करना पड़ा. शुरुआत के दिनों में इनके अध्यापक पिता ही थे. लेकिन बाद में फिर उनके क्षेत्र के प्रसिद्ध अध्य़ापक द्वारा उन्हें घर पर ही शिक्षा दी गई.
पहले इन्होंने अरबी और पारसी भाषा का अध्ययन किया. इसके बाद दर्शनशास्त्र, गणित, रेखागणित और बीजगणित की शिक्षा हासिल की. वहीं अंग्रेजी भाषा, इतिहास और राजनीति शास्त्र का अध्ययन इन्होंने स्वयं किया. इनकी गिनती प्रतिभाशाली छात्रों में की जाती थी.
छात्र जीवन में ही इन्होंने अपना लाइब्रेरी चलाना आरंभ कर दिया था और साथ ही वे अपनी उम्र से दोगुनी उम्र के विद्यार्थियों को पढ़ाना शुरू कर दिया. महज 16 साल की आयु में ही इन्होंने तमाम परंपरागत विषयों का अध्ययन कर लिया.
कैसे बने राष्ट्रवादी क्रांतिकारी – Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi
अबुल कलाम ने कई लेख लिखने के अलावा पवित्र कुरान की भी पुनः व्याख्या की थी. इन्होंने परंपराओं के अनुसरण का त्याग करने और नवीनतम सिद्धांतों का अनुरसण करने का निर्देश दिया. इनकी रूचि जमालुद्दीन अफगानी, अलीगढ़ के अखिल इस्लामी सिद्धांतों और सैयद अहदम खान के विचारों में थी.
अखिल इस्लामी भावना से ओतप्रोत होकर ही अबुल कलाम ने अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, मिस्त्र एवं तुर्की जैसे देशों का सफर किया. इराक में इनकी मुलाकात निर्वासित क्रांतिकारियों से हुई जो ईरान में संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए लड़ाई कर रहे थे. वहीं मिश्र में वे शेख मोहम्मद अब्दुल, सइद पाशा और अरब के अन्य क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं से मिले.
विभिन्न जगह हुई मुलाकातों ने इन्हें राष्ट्रवादी क्रांतिकारी में परिवर्तित कर दिया. इसके बाद विदेश से लौटने के बाद फिर वे बंगाल के दो प्रमुख क्रांतिकारियों अरविंद घोष और श्याम सुंदर चक्रवर्ती से मिले. इस मुलाकात के बाद ही वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन में जुट गए. इन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों को सिर्फ बंगाल और बिहार तक ही सीमित पाया.
सिर्फ 2 सालों में ही इन्होंने पूरे उत्तर भारत और मुंबई में कई सारे गुप्त क्रांतिकारी केंद्रों की स्थापना की. यह ऐसा समय था जब बहुत सारे क्रांतिकारी मुस्लिम विरोधी थे. क्यूंकि ये लोग सोचते थे कि ब्रिटिश सरकार मुस्लिम समाज का इस्तेमाल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के खिलाफ कर रही है.
अंग्रेजों के खिलाफ पत्रिकाओं का प्रकाशन – Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi
कलाम ने अपने सहयोगियों को काफी समझाया और साल 1912 में इन्होंने मुस्लिमों में देशभक्ति की भावना को बढ़ाने के लिए ‘अल हिलाल’ नामक एक साप्ताहिक उर्दू पत्रिका निकालना शुरू किया. इस पत्रिका ने दो समुदायों के बीच हुए मनमुटाव के बाद हिंदू-मुस्लिम एकता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी. धीरे-धीरे ‘अल हिलाल’ क्रांतिकारी मुखपत्र का रूप ले लिया.
अलगाववादी विचारों को फैलाने की वजह से वर्ष 1914 में सरकार ने ‘अल हिलाल’ को प्रतिबंधित कर दिया. तब आजाद हिंदू-मुस्लिम एकता पर आधारित भारतीय राष्ट्रवाद व क्रांतिकारी विचारों के प्रचार के लिए एक और साप्ताहिक पत्राका ‘अल बलाघ’ प्रकाशित करना शुरू किया. लेकिन साल 1916 में सरकार द्वारा यह पत्रिका भी प्रतिबंधित हो गई.
साथ ही कलाम को कलकत्ता से निष्कासित कर रांची में नजरबंद किया गया. साल 1920 से प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इन्हें रिहा किया गया. यहां से रिहा होते ही अबुल ने मुस्लिम समुदाय को खिलाफत आंदोलन के लिए प्रेरित किया. ब्रिटिश प्रमुख ने तुर्की पर कब्जा कर लिया था इसलिए खिलाफत आंदोलन कर खलीफा को फिर से स्थापित करना था.
महात्मा गांधी के कट्टर समर्थक – Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi
गांधी जी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का भी इन्होंने समर्थन किया था. वर्ष 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के बाद साल 1923 में वे दिल्ली में कांग्रेस के एक विशेष सत्र के लिए अध्यक्ष चुने गए.
महात्मा गांधी जी के नमक सत्याग्रह में शामिल होने के कारण आजाद को 1930 में फिर से गिरफ्तार किया गया. डेढ़ साल तक वे मेरठ जेल में रहे। साल 1940 में वे रामगढ़ अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष बने एवं 1946 तक वे उसी पद पर रहे. मोलाना विभाजन के कट्टर विरोधी थे.
वे कहते थे कि सभी प्रांतों को उनके स्वयं के संविधान पर एक सार्वजनिक सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के साथ ही स्वतंत्र कर देना उचित है. यही कारण है कि विभाजन से वे बहुत दुःखी हुए थे. विभाजन के कारण उनका संगठित राष्ट्र का सपना चकना चूर हो गया.
स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री – Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi
पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रीमंडल में आजाद शिक्षा मंत्री थे. इन्होंने अपना पदभार 1947 से 1958 तक संभाला था. शिक्षा के क्षेत्र में उनका उल्लेखनीय योगदान था. आईआईटी, आईआईएम और यूजीसी जैसे संस्थानों की स्थापना में मौलाना अबुल कलाम आजाद की भूमिका उल्लेखनीय है. उनके इस अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए साल 1992 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.
प्रति वर्ष 11 नवंबर को उनके जन्मदिन पर भारत में नेशनल एजुकेशन डे (राष्ट्रीय शिक्षा दिवस) का पालन किया जाता है. आजाद देश की उन बड़ी हस्तियों में शामिल हैं जिन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. साथ ही हिंदू-मुस्लिम एकता की नींव भी रखी थी.