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साहित्य के सूरज थे कृष्ण भक्त सूरदास – Surdas Biography in Hindi

हिंदी के भक्तिकाल के महान कवि सूरदास को वात्सल्य रस का सम्राट माना जाता है. अपनी कीर्ति “सूरसागर” के लिए प्रसिद्ध सूरदास को हिंदी साहित्य का सूरज भी कहते हैं. वे वल्लभाचार्य के 8 शिष्यों में प्रमुख थे और भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त भी थे. उनका जीवन कृष्ण भक्ति में ही समर्पित था. वे कृष्ण भक्ति में इतने लीन रहते थे कि महज 6 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने पिता से अनुमति लेकर घर त्याग दिया था. घर छोड़ने के बाद वे यमुना तट के गऊघाट पर ही रहने लगे थे.

जन्म और मृत्यु पर आज भी मतभेद – Surdas Biography in Hindi

इस महान कवि के जन्म और मृत्यु को लेकर हिंदी साहित्य में कोई पुख्ता सबूत नहीं है. इनके जन्म पर हिंदी साहित्य के साहित्यकारों का अलग-अलग मत है. जबकि कुछ ग्रंथों के साक्ष्य के आधार पर इनका जन्म साल 1535 में मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था. जबकि कुछ ग्रन्थों में उनका जन्म सीही नामक गांव बताया गया है. वहीं कुछ इतिहासकार मानते हैं कि सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी में हुआ था. माना जाता है कि सूरदास जन्मांध थे लेकिन उनकी रचनाओं को देखते हुए उनके जन्मांध होने पर भी विद्वानों में मतभेद है. साहित्यकारों के अनुसार, सूरदास एक गरीब सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. इनके पिता का नाम रामदास था, जो एक गायक थे.

शिक्षा और भक्ति – Surdas Biography in Hindi

सूरदास की मुलाकात गऊघाट पर ही वल्लभाचार्य से हुई थी जिसके बाद वे उनके शिष्य बन गए थे. भक्ति की दीक्षा उन्होंने वल्लभाचार्य से ही ली थी और यहीं से उन्हें श्री कृष्ण भक्ति की प्रेरणा मिली थी. दोनों गुरु, शिष्य के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि सूरदास और वल्लभाचार्य की उम्र में सिर्फ 10 दिन का ही अंतर था. सूरदास को भागवत लीला करने की सलाह वल्लभाचार्य से ही मिली थी और फिर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का गुणगान शुरू किया था. सूरदास सिर्फ दैन्य भाव से विनय के पद रचते थे, इन पदों की संख्या को ‘सहस्राधिक’ कहा जाता है. इसका संग्रहित रूप ‘सूरसागर’ के नाम से प्रसिद्ध है. गुरु वल्लभाचार्य से शिक्षा प्राप्त करने के बाद सूरदास कृष्ण भक्ति में पूरी तरह लीन हो गए थे. सूरदास की तमाम रचनाएं ब्रजभाषा में होने के कारण ही उन्हें ब्रजभाषा का महान कवि कहा जाता है. भक्ति काल में ब्रज क्षेत्र में ब्रजभाषा ही बोली जाती थी.

सूरदास की रचनाएं – Surdas Biography in Hindi

हिन्दी साहित्य के विद्वान कहे जाने वाले सूरदास की रचनाओं में आप श्री कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम और भक्ति का वर्णन देख सकते हैं. इनकी रचनाओं में वात्सल्य रस, शांत रस और शृंगार रस का सुन्दर वर्णन मिलता है. अपनी कल्पना के माध्यम से ही इन्होंने श्री कृष्ण के अद्भूत बाल्य स्वरूप, उनके सुंदर रूप, दिव्यता व लीलाओं का भी वर्णन किया है. उनके वर्णन को पढ़ने से लगता है मानों उन्होंने सब कुछ अपनी आँखों से देखा हो. यानी सूरदास की रचना में सजीवता मिलती है. भक्ति और शृंगार रस के अलावा इन्होंने प्रकृति का भी खूबसूरत वर्णन किया है. अपनी रचनाओं के लिए सूरदास अष्टछाप के कवियों में सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं.

हिंदी साहित्य में इनके द्वारा रचित 5 ग्रंथों का प्रमाण मिलता है. उनके नाम हैं सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयंती और ब्याहलो. कहा जाता है कि सूरसागर में करीब एक लाख पद हैं. जबकि वर्तमान संस्करणों में सिर्फ 5 हजार पद ही मिलते हैं. सूरसारावली की रचना संवत 1602 में हुई थी, जिसमें 1107 छन्द हैं. साहित्य लहरी में मात्र 118 पद हैं इसलिए इसे एक लघु रचना कहते हैं. यह ग्रन्थ शृंगार की कोटि में आता है. नल–दमयंती एक महाभारतकालीन नल और दमयंती की कहानी है. नल-दमयंती की तरह ही ब्याहलो सूरदास का एक अन्य मशहूर ग्रन्थ है. यह ग्रन्थ उनके भक्ति रस से बिल्कुल अलग है.

सूरदास की मृत्यु – Surdas Biography in Hindi

जन्म की तरह ही इनकी मृत्यु पर भी मतभेद जारी है. भक्तिमार्ग को अपनाने वाले सूरदास ने अपने जीवन का अंतिम पल ब्रज में गुजारा था. कुछ विद्धानों के अनुसार, इनका निधन 1642 विक्रमी (1580 ईस्वी) में गोवर्धन के निकट पारसौली गांव में हुआ था. ये वही गांव है जहाँ श्री कृष्ण रासलीलाएं रचते थे. सूरदास ने जिस स्थान पर अपना प्राण त्यागा था वहां आज सूरश्याम मंदिर (सूर कुटी) स्थापित है.