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सरस्वती पूजा विधि मंत्र, जिससे विद्या की देवी होती हैं प्रसन्न

माता सरस्वती की पूजा समूचे देश में छात्र-छात्राओं और कला प्रेमियों द्वारा विशेष तौर पर किया जाता है. वसंत पंचमी के अवसर पर बुद्धि और विद्या की देवी सरस्वती की आराधना होती है. स्कूल-कॉलेज से लेकर कई प्रतिष्ठानों, मंदिरों में लोग श्रद्धापूर्वक माता का ध्यान करते हैं. माना जाता है कि जिस विद्यार्थी पर मां सरस्वती की कृपा हो उसमें एक अलग ही लगन देखने को मिलती है.

यहां सरस्वती पूजा विधि और मंत्र देखें:

मां सरस्वती की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखकर उनके सामने धूप-दीप, अगरबत्ती, गुगुल जलाएं जिससे वातावरण में सकारात्मक उर्जा का संचार हो. इससे एक अलग ही छटा बनती है जिससे मन प्रफुल्लित हो जाता है.

प्रात:काल स्नानादि कर पीले रंग का वस्त्र धारण करें. मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखें. इसके बाद क्लश स्थापित कर भगवान गणेश और नवग्रह की विधिवत पूजा करें. फिर मां सरस्वती की पूजा करें. मां की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आचमन और स्नान कराएं. फिर माता का शृंगार करें. माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं. प्रसाद के रूप में खीर अथवा दूध से बनी मिठाईयां अर्पित करें. श्वेत फूल माता को अर्पण करें.

कुछ क्षेत्रों में देवी की पूजा कर प्रतिमा को विसर्जित भी किया जाता है. विद्यार्थी मां सरस्वती की पूजा कर गरीब बच्चों में कलम और पुस्तकों का दान करें. संगीत से जुड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगा कर मां की आराधना करें व मां को बांसुरी भेंट करें.

इस मंत्र को पढ़कर माता को प्रसन्न करें:

एमम्बितमे नदीतमे देवीतमे सरस्वति।
अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृधि।।

अर्थ: मातृगणों में श्रेष्ठ, देवियों में श्रेष्ठ हे मां सरस्वती, हमें प्रशस्ति यानी ज्ञान, धन व संपत्ति प्रदान करें.

इस मंत्र का जाप कर विद्यादायिनी को नमन करें:

सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥

पूजा के समय ‘सरस्वती वन्दना’ जरूर पढ़ें:

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥

शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥

अर्थ यहां देखें:

जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।

जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ.

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