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कामायनी के रचयिता जयशंकर प्रसाद का जीवन – Jaishankar Prasad Biography in Hindi

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर,

बैठ शिला की शीतल छांह

एक पुरुष, भीगे नयनों से

देख रहा था प्रलय प्रवाह

नीचे जल था ऊपर हिम था,

एक तरल था एक सघन,

एक तत्व की ही प्रधानता

कहो उसे जड़ या चेतन

ये पक्तियां हैं हिंदी भाषा के महाकाव्य कामायनी की. कला की दृष्टि से कामायनी छायावादी काव्यकला का सबसे बेहतर प्रतीक माना जा सकता है. मानव प्रेम में समरसता का भाव कितना जरूरी है, ये महाकाव्य उसी का दर्शन कराती है और इस महाकाव्य को रचने वाले हैं सर्वश्रेष्ठ कहानियों के रचनाकार जयशंकर प्रसाद. असल मायनों में एक व्यक्ति कैसे परेशानियों से ऊपर उठकर उत्कृष्ट रचना कर सकता हैं इसका अच्छा उदाहरण हैं जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad Biography in Hindi). इन्होंने बचपन से लेकर अपनी मृत्यु तक संघर्षों में ही अपना जीवन बिताया. परिवार भी संभाला और साहित्य को भी इन्होंने भरपूर वक्त दिया. आखिर जयशंकर प्रसाद ने कैसे ये सब कुछ किया ये जानना भी जरूरी हो जाता है. आइए आपको बताते हैं इनका संपूर्ण जीवन परिचय!

कुछ ऐसा रहा जयशंकर प्रसाद का बचपन – Jaishankar Prasad Biography in Hindi

वो साल था 1889 का जब ईश्वर का शहर कहे जाने वाले वाराणसी में जयशंकर प्रसाद का जन्म हुआ. पिता देवीप्रसाद साहू तम्बाकू का व्यापार करते थे. पैसों और सुख-सुविधाओं की घर में कोई कमी नहीं थी. बचपने से ही जयशंकर पढ़ाई-लिखाई में मन लगाने लगे. पिता इज्जतदार व्यक्ति थे, लिहाजा घर पर विद्वान आते-जाते थे और इसका प्रभाव इन पर भी पड़ा. घर पर ही प्रसाद जी पढ़ाई करते थे. अलग-अलग भाषाओं के लिए अलग-अलग शिक्षक पढ़ाने आते थे. संस्कृत, उर्दू, हिंदी और फारसी भाषा को सीखने का काम उस वक्त जारी था. भाषा का ज्ञान हासिल करने के बाद उन्हें क्वीन्स कॉलेज भेज दिया गया. यहां वो 8वीं क्लास तक पढ़े.

जब जीवन में आया अहम मोड़ – Jaishankar Prasad Biography in Hindi

किसी भी व्यक्ति के जीवन में पिता का बहुत महत्व होता है. प्रसाद के जीवन में भी था, लेकिन बहुत ज्यादा दिनों तक उन्हें पिता का साथ नहीं मिल पाया. जब वो 12 साल के ही थे तभी पिता जी उन्हें छोड़कर स्वर्ग की यात्रा पर चले गए. इसके बाद घर में लड़ाई-झगड़ों का दौर शुरू हो गया और देखते ही देखते पूरा परिवार बिखर गया और पैसों की भी कमी देखने को मिलने लगी. पिता के देहान्त के 3 सालों के अंदर ही माता जी भी स्वर्ग सिधार गईं. इसके बाद बड़े भाई ने काम संभाला लेकिन वो भी ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाए. इसके बाद सारी जिम्मेदारी जयशंकर के कंधों पर आ गई. 17 साल की उम्र में ही परिवार का बोझ वो संभालने लगे. इनका लगभग जीवन वाराणसी में ही बीता.

जयशंकर प्रसाद और उनकी रचनाएं – Jaishankar Prasad Biography in Hindi

वैसे तो जयशंकर प्रसाद ने कविता, उपन्यास, नाटक, निबंध सभी चीजें लिखीं लेकिन हर एक विधा में उनका कवि रूप जरूर दिखता था. जिस वक्त में जयशंकर ने उपन्यास या नाटक लिखे उस वक्त और भी साहित्यकार देश में थे लेकिन इनकी रचनाओं में भाषा, चरित्र-चित्रण सब कुछ सबसे अलग होता था. यही कारण रहा कि इनकी रचनाओं ने लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी. भाषा शैली और शब्द विन्यास के लिए प्रसाद को कई बार आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा लेकिन वो कभी भी पीछे नहीं हटे.

कामायनी, आंसू, लहर, झरना, चित्राधार, प्रेम पथिक, महाराणा का महत्व, कानन कुसुम. प्रसाद ने कुल 72 कहानियां लिखी हैं. कंकाल, इरावती और तितली नाम के तीन बड़े उपन्यास भी इन्होंने लिखे. इन तीनों उपन्यासों में गांव, नगर और प्रकृति का विशेष चित्रण है. 13 नाटक भी जयशंकर प्रसाद ने लिखे. स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जन्मेजय का नाग यज्ञ, राज्यश्री, कामना, एक घूंट नाम इनके नाटकों के नाम हैं. इनके नाटकों के बारे में कहा जाता है कि इन पर अभिनय नहीं हुआ. कई लोगों की ओर से कहा जाता है कि ये नाटक रंगमंच के हिसाब से नहीं लिखे गए. हालांकि फिर भी इनके कई नाटक सफलतापूर्वक अभिनीत हो चुके हैं.

उदार व्यक्तित्व के धनी थे प्रसाद – Jaishankar Prasad Biography in Hindi
अपने जीवन में वैसे तो प्रसाद को ज्यादा पुरस्कार नहीं मिले, लेकिन जितने भी पुरस्कार प्रसाद को मिले वो सारे उन्होंने दान कर दिए. महाकाव्य कामायनी के लिए इन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक हासिल हुआ. अपने जीवन काल में इन्होंने कभी धन-वैभव पर ध्यान नहीं दिया. 47 साल की उम्र में वाराणसी में ही 15 नंवबर 1937 को जयशंकर प्रसाद का निधन हुआ.