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सदाशिवराव भाऊ का जीवन परिचय – Sadashivrao Bhau Biography in Hindi

सदाशिव राव का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा. वे एक महान ऐतिहासिक राजा पेशवा बाजीराव के भाई चिमाजी अप्पा के बेटे थे. यानी वे पेशवा बाजीराव के भतीजे थे. वे मराठा सेना के सेनानायक और शासन प्रबंध में बहुत ही कुशल था. उसकी कुशलता को देखते हुए ही मराठा साम्राज्य का पूरा भार पेशवा ने उन्हीं पर छोड़ रखा था.

जन्म – Sadashivrao Bhau Biography in Hindi

सदाशिवराव का जन्म 4 अगस्त 1730 को पुणे में हुआ था। इनके पिता का नाम चिमनाजी अप्पा एवं माता का नाम राखमबाई था। देशी राज्यों के बीच सैनिक सफलताओं के कारण और पानीपत में मराठों के बीच पराजय के लिए सदाशिवराव वश्यकता से अधिक दोषी माना जाता है।

प्रारंभिक जीवन – Sadashivrao Bhau Biography in Hindi

इनका प्रारंभिक जीवन बहुत ही कष्टमय बीता. उनकी जिंदगी दुःखों से भरी थी. सदाशिवराव जब मात्र 1 महीने के थे तभी उनकी मां रुखमा बाई का निधन हो गया. इसके बाद 10 साल उम्र में उनके पिता भी स्वर्गवासी हो गए. उनकी अकस्मात् मौत ने सदाशिवराव को अंदर से तोड़ दिया था. अब पिता की मौत के बाद वे बिल्कुल अकेले हो गए लेकिन उनकी चाची काशीबाई एवं दादी राधाबाई ने उनका पालन-पोषण बहुत ही बेहतर तरीके से किया.

चाची और दादी ने उन्हें कभी भी माता-पिता की कमी महसूस नहीं होने दी. अपने बच्चे से भी ज्यादा प्यार सदाशिवराव को दिया गया ताकि उन्हें किसी तरह की दिक्कत ना हो. इनकी शिक्षा महाराष्ट्र के सतारा में हुई. इनकी शिक्षा-दीक्षा रामचंद्र बाबा शेनवी से ही मिली. नानासाहेब बालाजी बाजीराव के नाम से प्रसिद्ध थे और बाद में वे पेशवा बने.

फतेह सिंह भोसले और बाबूजी नाईट को सौंपे गए कार्य में वे दोनों असफल हो गए. तो फिर उन दोनों का कार्य सदाशिवराव को सौंपा गया और उन्होंने सभी कार्यों को बखूबी से निभाते हुए सन् 1746 में कर्नाटक में एक अभियान चलाया था. अभियान सन् 1747 तक चलता रहा और इस अभियान की सहायता से जनवरी 1749 में सदाशिव ने कोल्हापुर से दक्षिण आगरा में अपनी पहली लड़ाई जीती थी.

सदाशिव ऐसे बने मराठा सेनापति – Sadashivrao Bhau Biography in Hindi

सदाशिवराव 31 साल की उम्र में वे एक बड़ी सेना का नेतृत्व करने लगे थे. उस वक्त वे अब्दाली से जंग के मौदान में लड़ाई के लिए निकल पड़े थे. पेशवा के लिए बालाजी बाजीराव के बेटे विश्वास राव का नाम पहले से तय था. लेकिन मात्र 20 साल की उम्र ही युद्ध के मैदान में उनकी मौत हो गई.

इसके बाद सदाशिव को मराठा सेनापति बनाया गया. सेनापति बनने के बाद उन्होंने पानीपत की सबसे बड़ी लड़ाई में भाग लिया. पानीपत की लड़ाई में इनका मुकाबला अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली के साथ हुआ. अहमद शाह ने जनवरी 1757 में दिल्ली पर हमला कर दिया.

करीब एक महीने तक दिल्ली में रहकर उसने कोहराम मचा डाला. चूंकि पेशवा पद की जिम्मेदारी मराठा सेनापति सदाशिवराव पर थी इसलिए दिल्ली को बचाना उनकी प्रमुखता हो गई. तमाम किस्म की रणनीतियां बनाने के बाद वे अहमदशाह अब्दाली से लड़ने मैदान में उतरे. लेकिन लड़ाई में ज्यादा देर तक टिक नहीं पाए और उनकी हार हो गई.

क्यों हारे मराठा? – Sadashivrao Bhau Biography in Hindi

मराठाओं के युद्ध हारने की वहली वजह ये रही कि इनके प्रदेश में ठंड ज्यादा नहीं पड़ती थी. इसके विपरीत अफगानिस्तानियों को सर्दी झेलने की आदत थी. युद्ध वाली जगह पर तेज सर्दी होने की वजह से मराठा उसे झेल नहीं सके और युद्ध हार गए. युद्ध हारने की दूसरी वजह भोजन की कमी भी थी. युद्ध चलने के दौरान मराठाओं के पास भोजन की कोई सुविधा नहीं थी.

उनके लिए दिल्ली से भोजन सप्लाई होता था जिसे अबदालियों ने बंद करवा दिया. भोजन न मिलने पर मराठा कमजोर हो गए और अपना रण कौशल दिखाने में अक्षम हो गए. इसके अलावा युद्ध की रणनीति में एकमत न होना, मराठा साम्राज्य में बढ़ती लूटपाट की घटना, अब्दाली की राजनीति में दुश्मनों को दोस्त बनाने वाला शातिर दिमाग और युद्ध के मैदान में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास भी मराठों के हार की मुख्य वजहें रही.

इस युद्ध में हार का पूरा दोषी सदाशिवराव को ही माना गया. हर कोई यही कहने लगा कि सदाशिवराव की विफलताओं के कारण ही भारतीय सैनिक पानीपत की लड़ाई हार गई. कई सारे शासक ऐसा सोचते थे कि अगर अहमद शाह अब्दाली युद्ध जीत जाएगा तो वो स्वयं ही भारत छोड़ कर चला जाएगा. इसके विपरीत अगर सदाशिव युद्ध जीत जाते हैं तो वे अहमदशाह अब्दाली पर राज करेंगे. बहुत सारे शासकों ने इसी सोच की वजह से युद्ध के मैदान में सदाशिव का साथ नहीं दिया और उनकी हार हुई.

मृत्यु – Sadashivrao Bhau Biography in Hindi
पानीपत का युद्ध लंबे समय तक चलता रहा. सदाशिवराव की विशाल सेना ने पानीपत के मैदान में जहां पनी मोर्चेबंदी कर रखी थी उसे अब्दाली की फौज ने घेर लिया. इस दौरान सदाशिवराव भाउ ने अपनी असाधारण वीरता का परिचय दिया लेकिन 15 जनवरी 1761 ई. को वे वीरगति को प्राप्त हो गए. मराठा शक्ति को इस युद्ध से गहरा धक्का लगा और इसकी चिंता से पेशवा की भी मृत्यु हो गई.