जीना भी एक कला की तरह है, बल्कि कला ही नहीं ये एक तपस्या है. ये लाइन अपने आप में बताने के लिए काफी है कि जिंदगी क्या चीज होती है! किसी भी शख्स के लिए जिंदगी आसान नहीं होती, बल्कि वो उसे अपने कर्मों से आसान बनाता है. ‘जीवन एक कला है, कला ही नहीं तपस्या है’ – ये पंक्तियां किसी और ने नहीं बल्कि हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखी है. वही हजारी प्रसाद जिनका भारत के साहित्यिक विकास में बहुत योगदान है. (Hazari Prasad Dwivedi Biography in Hindi)
आज भी 12वीं क्लास तक के विद्यार्थी इनकी कविताएं और कहानियां पढ़ते हैं. आज द्विवेदी जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कविताएं और कहानियां उतनी ही प्रासंगिक हैं. हजारी प्रसाद किस तरह से साहित्यकार बने इसके पीछे भी बहुत से प्रसंग हैं. एक ज्योतिष के घर में पैदा होकर वो कई भाषाओं के विद्वान बने. आइए जानते हैं कि कैसा रहा उनका जीवन सफर!
ऐसे सफर की हुई शुरुआत – Hazari Prasad Dwivedi Biography in Hindi
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दुबे का छपरा नाम के छोटे से गांव में 19 अगस्त 1907 को हजारी प्रसाद का जन्म हुआ. पिताजी पंडित अनमोल प्रसाद द्विवेदी ज्योतिष विद्या से परिपूर्ण थे, लिहाजा शुरू से ही उन्हें वैसा ही माहौल मिला. वो ज्योतिष विद्या का ज्ञान अपने घर से ही लेने लगे. द्विवेदी जी की शुरुआती शिक्षा अपने गांव में हुई, मिडिल स्कूल भी यहां से ही पास हुए. गांव में रहकर ही वो पढ़ते और घर के कामों में भी हाथ बंटाते. देखते-देखते दिन बीतते गए और वो 1930 में इंटर की परीक्षा भी पास कर गए. उन्होंने इसके अलावे ज्योतिष विषय में आचार्य की परीक्षा भी पास कर ली. शिक्षा-दीक्षा का काम होने के बाद अब इनके जीवन में एक अहम पड़ाव आया. द्विवेदीजी शांतिनिकेतन की ओर निकल पड़े. यहां ही हिंदी को लेकर उन्होंने अपना काम शुरू किया. द्विवेदीजी शांति निकेतन में प्रिंसिपल के तौर पर गए थे. यहां वो रवींद्रनाथ ठाकुर से बहुत ही प्रभावित हुए.
साहित्य के लिए समर्पित – Hazari Prasad Dwivedi Biography in Hindi
द्विवेदीजी ने शांतिनिकेतन में 1940 से लेकर 1950 तक खुद को साहित्य के लिए समर्पित किए रखा. उनको यहां नए मानवतावाद का ज्ञान प्राप्त हुआ. द्विवेदीजी रवींद्रनाथ ठाकुर के अलावा क्षितिजमोहन सेन, विधुशेखर भट्टाचार्य और बनारसीदास चतुर्वेदी के भी बहुत नजदीक रहे. इन लोगों के सान्निध्य में उनका साहित्य निखर गया. उनकी कहानियों की चर्चा आगे करेंगे लेकिन आपको जानकारी दे दें कि आचार्य द्विवेदी हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और बांग्ला भाषाओं के विद्वान थे.
उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से डी.लिट. की उपाधि ली थी. संत कबीर जिनके दोहे आज भी लोगों की जुबां पर हैं, हजारी प्रसाद द्विवेदी के शोध का विषय रहा है. अगर हजारी प्रसाद की लेखन भाषा की बात करें तो उनकी भाषा परिमार्जित खड़ी बोली थी. उन्होंने भाव और विषय के अनुसार भाषा का चयनित तौर पर इस्तेमाल किया. इनकी भाषा के दो रूप दिखलाई पड़ते हैं. पहली प्रांजलिक व्यावहारिक भाषा और दूसरी संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय भाषा. पहला रूप द्विवेदी जी के सामान्य निबंधों में मिलता है. इस तरह की भाषा में उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का भी समावेश हुआ. दूसरी शैली उपन्यासों और सैद्धांतिक आलोचना के क्रम में परिलक्षित होती दिखी.
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द्विवेदी जी की कहानियां – Hazari Prasad Dwivedi Biography in Hindi
द्विवेदीजी ने कई मशहूर कहानियां लिखीं, जिनमें प्रमुख: आम फिर बौरा गए ,शिरीष के फूल, भगवान महाकाल का कुंथानृत्य, महात्मा के महा परायण के बाद, ठाकुर जी की वटूर, संस्कृतियों का संगम, हम क्या करें, मुनष्य की सर्वोत्तम कृति: साहित्य, आन्तरिक सुनिश्चिता भी आवश्यक है, समस्याओं का सबसे बड़ा हल है. द्विवेदी जी को उनको साहित्य के योगदान के लिए सन 1957 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. लंबी बीमारी के बाद उनका निधन 1979 में हो गया. आज भी हजारी प्रसाद द्विवेदी हम सबके बीच अपनी कहानियों को लेकर जीवित हैं!