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बैसाखी क्यों और कब मनाई जाती है, इसका इतिहास और महत्व – Baisakhi Festival in Hindi

Baisakhi Festival in Hindi: बैसाखी त्योहार को देश भर में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है. वैसे तो इसकी रौनक पूरे देश में देखते ही बनती है लेकिन हरियाणा और पंजाब में इसका अलग ही अंदाज है. यहां लोग बैसाखी उत्सव में ढ़ोल-नगाड़ों पर नाचते-गाते हैं. वहां के तमाम गुरुद्वारों को सजाया जाता है और वहां भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है. मौके पर लोग एक दूसरे को नए साल की बधाई देते हैं. घरों में विभिन्न तरह के पकवान बनाए जाते हैं. बैसाखी त्योहार में भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है. बैसाखी उत्सव का मेला नदी, नहर, तालाब और मंदिरों के किनारे लगाया जाता है. इस मेले में विभिन्न तरह के सामानों के अलावा मनोरंजन के लिए झूले भी लगाए जाते हैं. आइए जानते हैं यह त्योहार क्यों मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है?

बैसाखी का महत्व – Baisakhi Festival in Hindi

पंजाब और हरियाणा के अलावा पूरे उत्तर भारत में बैसाखी का त्योहार हर साल 14 अप्रैल को मनाया जाता है. जिसमें से ज्यादातर जगहों में इसका संबंध फसल से ही जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि सर्दियों में फसल कटने के बाद नए साल के आगमन के रूप में इसे मनाया जाता है.

बैसाखी किसानों का प्रमुख त्योहार है और किसान इस दिन अपनी अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं. असम में इस त्योहार को बिहू कहा जाता है, जबकि पश्चिम बंगाल में इसे पोइला बैसाख के नाम से जाना जाता है. वहीं केरल में इस त्योहार को पूरम विशु कहते हैं. बैसाखी के दिन ही सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है तभी तो इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है.

इस त्योहार का हिंदुओं के लिए बहुत महत्व है. माना जाता है कि हजारों वर्ष पहले गंगा इसी दिन धरती पर उतरी थीं. इसी कारणवश बैसाखी के दिन धार्मिक नदियों में नहाया जाता है और गंगा किनारे जाकर मां गंगा की आरती करना शुभ माना जाता है.

क्यों मनाया जाता है बैसाखी का त्योहार – Baisakhi Festival in Hindi

बैसाखी उत्सव मुख्य रूप से सिख धर्म की स्थापना और फसल पकने के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. खरीफ की फसल इस महीने पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाती है. पकी हुई फसलों को काटने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है. इसलिए किसान खरीफ की फसल पकने की खुशी में यह त्योहार मनाते हैं. सिखों के 10वें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ने 13 अप्रैल 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की थी. बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखी थी. खासला पंथ की स्थापना का मूल उद्देश्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त करना था. तभी से इस दिन को मनाना शुरु किया गया. बैसाखी के दिन से ही पंजाबी नए साल की शुरुआत होती है.

कृषि उत्सव भी है बैसाखी – Baisakhi Festival in Hindi

सूर्य की स्थिति परिवर्तन के कारण इस दिन के बाद से धूप तेज होने लगती है. धूप तेज होने से गर्मी भी शुरू हो जाती है. धूप की तेज किरणों में रबी की फसलें पक जाती है. तभी तो यह त्योहार किसानों के लिए एक उत्सव की तरह है. साथ ही यह दिन मौसम में बदलाव का प्रतीक भी माना जाता है. अप्रैल महीने में सर्दी पूरी तरह से खत्म होकर गर्मी के मौसम की शुरुआत हो जाती है. मौसम परिवर्तन के लिए भी इस त्योहार को मनाया जाता है.

बैसाखी का इतिहास – Baisakhi Festival in Hindi

बैसाखी से जुड़ी एक कथा महाभारत काल के पांडवों के समय की है. मान्यता है कि पांडव जब अपने वनवास के समय पंजाब के कटराज ताल पहुंचे तो उन्हें प्यास लगी थी. युधिष्ठिर को छोड़कर चारों भाई अपनी प्यास बुझाने एक सरोवर के पास पहुंचे. लेकिन यक्ष के मना करने के बाद भी उन्होंने पानी पी लिया. जिसके बाद उन चारों की मृत्यु होगी. काफी देर तक भाइयों के वापस नहीं आने पर युधिष्ठिर उन्हें तलाशने के लिए निकले.

युधिष्ठिर भी जैसे ही उस तालाब के पास पहुंचकर पानी पीना चाहा वैसे ही यक्ष पुनः आए और युधिष्ठिर से कहने लगे की पहले मेरे प्रश्नो का उत्तर दें, फिर आप पानी पी सकते है. युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी सवालों का उत्तर दे दिया, तो वे प्रसन्न हो गए. फिर यक्ष ने युधिष्ठिर के चारों मृत भाइयों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि वे किसी एक को जीवित करा सकते हैं. युधिष्ठिर ने भाई सहदेव को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की.

तब यक्ष ने उनसे पूछा कि आपने अपने सगे भाइयों को छोड़कर सौतेले भाई को जीवित करने की मांग क्यों रखी. तब युधिष्ठिर ने कहा कि माता कुंती के दो पुत्र जीवित रहें, इससे बेहतर होगा कि माता माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहे. युधिष्ठिर के इस जवाब से प्रसन्न होकर यक्ष ने उनके चारो भाइयों को जीवित कर दिया. तभी से इस दिन पवित्र नदी के किनारे विशाल मेले का आयोजन होता है और जुलूस भी निकला जाता है. इस जुलूस में पांच प्यादे नंगे पाव सबसे आगे चलते है और बैसाखी का त्योहार उत्साह से मनाया जाता है.