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पितृ पक्ष क्या है? इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में जानें!

Pitru Paksha in Hindi: हिन्दू धर्म के विभिन्न पर्वों को अलग-अलग रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है. इन सभी त्योहारों को मनाने के पीछे कोई न कोई धार्मिक, पौराणिक व ऐतिहासिक कथाएं जुड़ी हैं. हिन्दू धर्म में बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक कई परंपराओं को निभाने का चलन है. इन्हीं परंपराओं में से एक है पितृ पक्ष. पितृ पक्ष यानि श्राद्ध कार्य, जिसमें पितरों का तर्पन किया जाता है.

श्राद्ध कर्म करने की परंपरा भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक है. इसी श्राद्ध कर्म के माध्यम से पितरों की तृप्ति के लिए उन्हें भोजन दिया जाता है. साथ ही, पिंड दान व तर्पण के माध्यम से पूर्वजों की आत्मा की शांति की कामना की जाती है. आइए जानते हैं, पितृ पक्ष का महत्व और उससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में!

पितृ पक्ष का महत्व – Pitru Paksha in Hindi

हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष का खास महत्व होता है. इस धर्म में मृत्यु के बाद उस व्यक्ति का श्राद्ध करना जरूरी समझा जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध कार्य नहीं होने पर मतृक की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है और उनकी आत्मा भटकती रहती है. यह भी कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वे प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है.

यह भी मानना है कि पितृ पक्ष के दौरान यमराज पितरों को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त करते हैं. ऐसे में अगर पितृ पक्ष में उनका श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दुःखी हो जाती है. पितर अगर नाराज हो जाते हैं तो व्यक्ति के जीवन से खुशहाली और शांति छिन जाती है, जिससे वो कभी जीवन में आगे नहीं बढ़ पाता है.

कितनी पुरानी है पितृ पूजा परंपरा? – Pitru Paksha in Hindi

पितृ पूजा की परंपरा बहुत प्राचीन है, जो कि वैदिक काल से चली आ रही है. पितृ पूजा में पितरों से आह्वान किया जाता है कि वे पूजकों को धन, समृद्धि व शक्ति प्रदान करें. पितरों की आराधना में ऋगवेद में लिखी गई एक लंबी ऋचा में यम तथा वरुण का भी उल्लेख मिलता है. इसमें पितरों का विभाजन तीन वर्गों में किया गया है, जिसमें वर, अवर और मध्यम शामिल हैं. ऋगवेद के द्वितीय छंद में उल्लेख है कि सबसे पहले और अंतिम दिवंगत पितृ तथा अंतरिक्षवासी पितृ श्रद्धेय हैं.

किसे करना चाहिए पितरों का श्राद्ध?

शास्त्र की मानें तो श्राद्ध का अधिकार पुत्र को दिया गया है. लेकिन जिसका पुत्र नहीं है, उसका श्राद्ध या तर्पण उसके पौत्र, प्रपौत्र या व्यक्ति की विधवा पत्नी भी कर सकती है. वहीं पुत्र नहीं होने पर पत्नी का श्राद्ध उसके पति द्वारा किया जा सकता है.
पितृ पक्ष से संबंधित पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जोगे-भोगे नाम के दो भाई थे. दोनों एक-दूसरे से अलग अपने परिवार के साथ रहते थे. इनमें से जोगे बहुत धनी था जबकि भोगे बहुत गरीब. दोनों भाइयों के आपसी रिश्ते बहुत अच्छे थे. जोगे की पत्नी को अपनी संपत्ति पर घमंड था, वहीं भोगे की पत्नी पवित्र हृदय वाली दयालु महिला थी.

जब पितृ पक्ष आता तो जोगे की पत्नी ने उससे अपने पितरों का श्राद्ध करने के लिए इसलिए बोला क्योंकि श्राद्ध के माध्यम से वो समाज व मायके वालों को दावत पर बुलाकर अपनी शान-शौकत दिखाना चाहती थी. जोगे भी श्राद्ध को महत्व नहीं देता और टालता रहता था. अंत में पत्नी की बात मानकर वो श्राद्ध के लिए तैयार होता है.

पितरों की तिथि वाले दिन जोगे की पत्नी काम निपटाने के लिए देवरानी को बुला लेती है. भोगे की पत्नी पवित्र मन से पितरों के लिए तरह-तरह के पकवान बनाती है. इसके बाद वो अपने घर आकर गई क्योंकि अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए उसे श्राद्ध तर्पण करना था. अपनी तिथि वाले दिन पितृ तृप्ति के लिए धरतीलोक पर आए और पहले जोगे के घर गए. वहां जोगे के ससुराल वालों को भोजन करते देख वे नाराज हो गए. फिर से भोगे के घर गए तो वहां देखा कि पितरों के नाम पर “अगियारी” दे दी गई है.

आगे की कथा – Pitru Paksha in Hindi

यहां पितर उसकी राख चाट कर भूखे ही नदी किनारे पहुंचे. वहां सभी पितरों के एकत्र होने के बाद सभी अपने यहां के श्रद्धों की तारीफ करनी शुरू की. जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई. भोगे के पितरों को लगा कि अगर भोगे गरीब होता तो वो भोजन जरूर कराता. अब पितरों को भोगे पर दया आ गई और उन्होंने भोगे को सामर्थ्यवान बनाने के लिए प्रार्थना की.

पितरों की तिथि वाले दिन शाम को जब भोगे के बच्चों को भूख लगी तो उन्होंने मां से खाना मांगा. मां ने टालने के लिए बच्चों से कहा कि आंगन में बर्तन रखा है उसे खोल लो और जो कुछ मिले उसे बांट कर खा लो. बच्चों ने देखा कि बर्तन मोहरों से भरा है और उसने मां से इसकी जानकारी दी. भोगे की पत्नी मोहरों को देखकर आश्चर्यचकित हो उठी. पितरों के प्रति श्रद्धा भावना रखने वाले भोगे की गरीबी दूर हो गई.

इसके बाद वाले वर्ष पितृ पक्ष पर भोगे की पत्नी ने अपने पितरों के लिए विभिन्न तरह के पकवान बनाए और ब्राह्मणों को दान करवा कर दक्षिणा भी दी. यह सारा कुछ देख कर उनके पितृ खुश हुए और उनकी आत्मा की शांति मिली.