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‘आपका बंटी’ जैसे मशहूर उपन्यास लिखने वाली लेखिका मन्नू भंडारी

रिश्ता किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए उसके जीवन की अहम कड़ी होता है. रिश्ता पति-पत्नी का हो सकता है. मां-बेटे का हो सकता है. बेटी-पिता का हो सकता है. पति-पत्नी के रिश्ते में सबसे ज्यादा खासियत होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस रिश्ते के मजबूत होने के बाद एक नए वंश का उदय होता है. पति-पत्नी के आपसी प्यार के बाद संतान सुख की प्राप्ति होती है. लेकिन कभी-कभी यही रिश्ता अगर टूट जाए तो सबसे ज्यादा तकलीफ बच्चे को होती है!

ऐसी कठिन स्थिति में बच्चा दोनों का प्यार चाहता है मगर ऐसा मुमकिन नहीं हो पता है. ऐसे ही एक बच्चे की मनोदशा को बड़े ही सुंदर ढंग से दिखलाया है, ‘आपका बंटी’ नाम की किताब में मन्नू भंडारी ने. मन्नू अपने जमाने की मशहूर उपन्यासकार रहीं हैं. उन्होंने हिंदुस्तान में साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर उनका जीवन कैसा था? उन्होंने शिक्षा कहां से ली? उन्हें किन-किन पुरस्कारों से नवाजा गया? आइए यहाँ इन्हीं सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं!

मन्नू भंडारी का जीवन – Mannu Bhandari Biography

राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसे गांव भानपुरा में 3 अप्रैल को जन्म हुआ था मन्नू भंडारी जी का. वैसे तो पिता सुखसम्पत राय काफी अमीर थे लेकिन भाग्य में शायद कुछ और ही लिखा था. समय बदला और परिस्थितियां बदलीं. मन्नू अपने घर में सबसे छोटी थीं, पांच बच्चों में. पढ़ने में शुरू से होनहार थीं. पिता जी ने पैसों की कमी होने पर भी किसी बच्चे की परवरिश सामान्य से नीचे के स्तर पर नहीं की. उन्होंने कभी भी मन्नू या अपनी किसी भी संतान को गरीबी का एहसास नहीं होने दिया.

बताया जाता है कि एक बार स्कूल टाइम में मन्नू के साथ छेड़छाड़ की घटना को अंजाम दिया गया. इसके बाद मन्नू के मन में आशंकाएं उमड़ने लगी लेकिन उसके बावजूद भी उनके पिता ने हिम्मत बांधे रखा. मन्नू को वो लगातार स्कूल भेजते रहे. कभी किसी विपरीत परिस्थिति में ना झुकने और डटे रहने की ही सलाह दी.

साहित्य के सफ़र की शुरुआत – Mannu Bhandari Biography

वो वक्त था सन 1947 का. हिंदुस्तान और पाकिस्तान अलग हो रहे थे. ऐसे विभाजन के वक्त मन्नू को भी अजमेर छोड़कर जाना पड़ा. मन्नू जी की उम्र उस वक्त 16 साल की थी, जब वो अजमेर छोड़कर कलकत्ता आ गईं. पिता जी इंदौर से अजमेर आये थे. मन मन्नू का अजमेर में ही लगता था, लेकिन इसे किस्मत का ही फेर कहिए कि उन्हें किन्हीं कारणों से कलकत्ता आना पड़ा. मन्नू जी 47 में यहां आईं और 1950 से उनका साहित्य का सफर शुरू हुआ.

काम, साहित्य और मन्नू भंडारी – Mannu Bhandari Biography

मन्नू भंडारी ने 1952 से लेकर 1961 तक बालीगंज शिक्षा सदन और 1961 से लेकर 1964 तक रानी बिड़ला कॉलेज में पढ़ाने का काम किया. 1964 में ही वो मिरांडा कॉलेज में हिंदी की प्राध्यापिका बनीं. 1964 से लेकर 1991 तक वो यहीं अपनी सेवाएं देती रहीं. उन्होंने कई बच्चों का जीवन सवार दिया. 1992 में वो उज्जैन चली गईं. यहां प्रेमचंद सृजनपीठ में उन्होंने अपनी सेवाएं दीं.

मन्नू भंडारी ने कहानी और उपन्यास दोनों ही विधाओं में अपनी रुचि दिखाई. राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया मन्नू जी का उपन्यास एक इंच मुस्कान शिक्षित और आधुनिकता पसंद लोगों की दुखभरी प्रेमगाथा को दर्शाता है. शादी टूटने की त्रासदी में घुट रहे एक बच्चे को केंद्रीय विषय बनाकर लिखे गए उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ ने भी अपने वक्त में खूब वाहवाही बटोरी. आम आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को उकेरने वाले उनके उपन्यास ‘महाभोज’ पर आधारित नाटक खूब लोकप्रिय हुआ. इनकी ‘यही सच है’ कृति पर आधारित ‘रजनीगंधा फ़िल्म’ ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई. मन्नू इस वक्त अपने शीर्ष पर थीं.

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मन्नू भंडारी की उपलब्धियां – Mannu Bhandari Biography

मन्नू की कहानी संग्रह में एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, त्रिशंकु, आंखों देखा झूठ आदि शामिल है. वहीं उपन्यासों में आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान, एक कहानी यह भी काफी चर्चित रहा है. बिना दीवारों का घर नाम का नाटक भी उन्होंने लिखा है. 1980-1981 में उन्हें महाभोज के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान नामक पुरस्कार से नवाजा गया. 1982 में उन्हें कला कुंज सम्मान मिला. 2004 में मन्नू जी को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.

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