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परीक्षा में बैठते वक्त क्या आप भी सोचते थे ऐसा?

बचपन कितना खूबसूरत था ना, ना कोई टेंशन थी ना कुछ! अपना आराम से खाओ-पीओ, खेलो, घूमो और घर वापस आ जाओ. घर आने पर मम्मी के हाथ का बढ़िया खाना और फिर चैन की नींद. ऐसा ही होता है एक आम आदमी का बचपन. बचपन में इंसान जो कमा लेता वो कभी भी नहीं कमा पाता. बचपन की यादें ही इंसान को बुढ़ापे में सहारा देती हैं. बचपन अगर आप याद करेंगे तो आपको एग्जाम की याद जरूर आएगी. हम और आप सभी कभी न कभी एग्जाम में जरूर बैठे होंगे. और इस दौरान आपने बहुत कुछ महसूस भी किया होगा. आज उन्हीं यादों को हम एक बार आप सबके साथ ताजा करने जा रहे हैं!

एग्जाम बचपन में हम सबको बहुत डराकर रखते थे. भले ही हम कितनी भी तैयारी क्यों न कर लें लेकिन हमारे अंदर कॉन्फिडेंस कम ही होता था. हमें लगता था कि अगर तैयारी थोड़ी और कर ली होती तो बात ही कुछ और होती. और जब एग्जाम का दिन आता था तब बढ़ जाती थी दिल की धड़कनें. हम एग्जाम हॉल में बैठकर ये सारी बातें सोचते थे.

ये कैसे आ गया एग्जाम में?

जब भी हम लोग एग्जाम हॉल में बैठे हों तो हमारे दिमाग में क्वेश्चन पेपर देखकर यही ख्याल आता था कि यार ये सवाल कैसे आ गया. बहुत सी पढ़ाई के बाद भी एग्जाम में ऐसे-ऐसे सवाल पूछे जाते थे कि क्या ही कहने! और जब हमसे क्वेश्चन बन नहीं रहे होते थे तब हम अपनी आने वाली शामत के बारे में सोचते थे. घर जाने के बाद धुलाई तो नहीं होगी? कभी-कभी इसी चक्कर में बनते हुए सवाल को भी हम छोड़कर चले आते थे. और उसके बाद शुरू होता था मन में उधेड़बुन का दौर.

कहीं मैं इस सब्जेक्ट में फेल तो नहीं हो जाऊंगा?

एग्जाम की डेट्स आते ही हम ये सोचने लग जाते थे कि किस सब्जेक्ट में हमें कितनी तैयारी करनी है. इसके बाद जब किसी भी सब्जेक्ट का एग्जाम होता था तो हम उस दिन खूब मन लगाकर पढ़ते थे. लेकिन जैसे ही एग्जाम हॉल में हम घुसे और हमारे मन मुताबिक पेपर नहीं आया तो मन में एक ही सवाल गूंजता था कि कहीं मैं इस सब्जेक्ट में फेल तो नहीं हो जाऊंगा? अगर मैं फेल हो गया तो आगे क्या होगा? एग्जाम हॉल में ये बात सोचते-सोचते हम अलग ही दुनिया में चले जाते थे.

मैं घर जाकर पापा से क्या कहूंगा?

कभी पापा की याद आये न आये हम सबको एग्जाम के टाइम पापा की याद जरूर आती थी. अगर एग्जाम अच्छा नहीं गया. अगर पेपर पूरा सॉल्व नहीं हुआ तो हम एग्जाम हॉल में बैठे-बैठे यही सोचते थे कि घर जाकर पापा से क्या कहेंगे? ऐसा सामान्य तौर पर होता है कि जब हम एग्जाम के बाद घर जाते हैं तो पापा पूछते हैं कि बेटा तुम्हारा पेपर कैसा हुआ? तो इस जवाब के लिए हमें मानसिक तौर पर तैयार होना पड़ता था.
वो सामने वाला इतनी कॉपियां क्यों ले रहा है?
हम इंडियंस की ये आदत होती है कि हम खुद की खुशी से ज्यादा खुश नहीं होते बल्कि दूसरों की खुश देखकर ज्यादा दुखी होते हैं. हम और आप सबने एग्जाम में एक बात दिमाग में जरूर लाई होगी कि ये सामने वाला इतनी कॉपियां क्यों ले रहा है. अगर मैं भी इसकी तरह पढ़ के आया होता तो शायद मैं भी कॉपियां ले रहा होता. मुझे भी लिख-लिखकर खूब मजा आता.
ऐन वक्त पर बस यही होना था

कभी-कभी बचपन में एग्जाम देते वक्त कुछ ऐसी चीजें होती थी जो नहीं होनी चाहिए थी. मसलन अचानक पेन की इंक खत्म हो जाना. ऐसा होता था कि जब हम पेपर लिख रहे होते थे कि वैसे ही पेन की इंक खत्म. अब दिमाग में यही सवाल गूंजे की करें तो करें क्या? हम सबकी आदत भी यही होती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन पेन तो एक ही लेकर जाएंगे.

ये तो रही एग्जाम के दौरान बचपन में दिमाग में आने वाली बातें. अगर आपके पास भी एग्जाम से रिलेटेड कुछ बचपन की यादें हैं तो हमें नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जरूर बताइए!