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कैसे करें मां दुर्गा की आरती, पूरी विधि यहां देखें

मां दुर्गा की आरती भक्त जब करें तभी फलदायी है. वैसे नवरात्रि के दौरान सुबह-शाम दुर्गाजी की आरती अवश्य ही करना चाहिए. अगर आरती ना कर सकें तो भी आरती में शामिल होकर भी पुण्य कमाया जा सकता है. आप जैसे भी शुद्ध मन से मां को पुकारेंगे, तो मां प्रसन्न होती हैं. लेकिन कुछ जरूरी बातों का ख्याल रखने से आप अच्छी तरह आरती कर सकेंगे!

आरती से पहले मां दुर्गा के मंत्रों से तीन बार पुष्पांजलि अर्पित करनी चाहिए. इसके बाद शंख, घड़ियाल, ढोल और नगाड़े आदि महावाद्यों से जय-जयकार लगानी होती है. इसके बाद घी या कपूर से विषम संख्या में (1, 5, 7, 11, 21, 101) दीप जलाकर आरती शुरू करें. ध्यान रखें कि कभी भी तीन दीप जलाकर आरती नहीं करनी चाहिए.

आरती के समय पंचप्रदीप जलाना अधिक चलन में है जिसमें पांच दीप या बत्ती जलाई जाती है. माता की आरती कपूर जलाकर भी किया जाता है. पद्मपुराण के अनुसार, ‘कुंकुम, अगर, कपूर, घृत और चन्दन की सात या पाँच बत्तियाँ बनाकर या दीपक की (रुई और घी की) बत्तियाँ बनाकर तथा शंख, घण्टा आदि बाजे बजाते हुए पूरे मन से माता की आरती करनी चाहिए. आरती करते हुए पहले माता की प्रतिमा के चरणों में चार बार घुमाएं, दो बार नाभि प्रदेश में, एक बार मुख मण्डल पर और सात बार समस्त अंगों पर घुमाएं. इससे पूरे चौदह बार आरती घुमानी चाहिए. अब कभी आरती करें तो इस विधि का पालन कर सकते हैं!

दुर्गा जी की आरती: ॐ जय अम्बे गौरी…

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी॥

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको॥

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै॥

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी॥

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती॥

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती,
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू॥

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता॥

भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती॥

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी॥