Holi Essay in Hindi: रंगों का त्योहार होली हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है. यह त्योहार आपसी प्रेम, सौहार्द व भाईचारे का प्रतीक है. हिन्दी पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष फाल्गुण मास की पूर्णिमा के दिन होली मनाई जाती है. इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. होली के उपलक्ष्य में जगह-जगह विभिन्न तरह के कार्यक्रम होते हैं, जिसमें होली मिलन समारोह खास होता है.
होली की मस्ती में लोग नाचते-गाते हैं और पुराने गिले-शिकवे को भुलाकर सभी एक-दूसरे से प्रेम से गले मिलते हैं. साथ ही, मिठाई खिलाकर एक दूसरे को होली की शुभकामनाएं देते हैं. होली मनाने की परंपरा कब शुरू हुई इसका कोई ऐतिहासिक व प्रामाणिक साक्ष्य तो नहीं है लेकिन हिंदू धर्म ग्रंथों में होली मनाने के पीछे जो कारण हैं, उनसे जुड़ी कथाएं जरूर मिलती है. होली त्योहार के पीछे कई पौराणिक कथाएं व धार्मिक मान्यताएं हैं. इस लेख के माध्यम से होली से संबंधित पौराणिक कथाओं के बारे में जानते हैं.
होली का महत्व – Holi Essay in Hindi
कहां-कहां है होली मनाने की परंपरा – Holi Essay in Hindi
– रंगो का त्योहार होली सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है. भारत में भी अलग-अलग राज्यों में से अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है.
– ब्रज की होली बहुत ही मशहूर है. यहां बरसाने की फूलों की होली और लठमार होली देखने के लिए लोगों की काफी भीड़ जुटती है.
– उत्तरप्रदेश की कृष्णनगरी मथुरा में इस त्योहार को लगभग 25 दिनों तक मनाया जाता है. इस मौके पर वहां कुमाऊं, लोक गीत एवं संगीत गोष्ठियां इस त्योहार के आनंद को और खुशनुमा कर देती है.
– होली के मौके पर हरियाणा राज्य में धुलंडी के दिन भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की अनूठी परंपरा है.
– वहीं गोवा में होली पर जुलूस निकालने की परंपरा है, तो महाराष्ट्र में सूखे गुलाल से होली खेलने और पंजाब में होली के दिन सिखों द्वारा अपनी शक्ति प्रदर्शन की परंपरा भी वर्षों पुरानी है.
– इस तरह भारत के अलग-अलग राज्यों में लोग होली के त्योहार को अपने-अपने तरीकों से मनाते हैं.
क्यों मनाई जाती है होली? – Holi Essay in Hindi
रंगों के त्योहार होली के साथ एक नहीं बल्कि कई सारी पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई है. इनमें होलिका व विष्णु के परम भक्त प्रहलाद की कहानी सबसे प्रचलित है.
हिरण्यकश्यप और प्रहलाद से जुड़ी कहानी
बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार होली से संबंधित ये सबसे प्रसिद्ध कहानी है. इसमें विष्णु भक्त प्रहलाद, हिरण्यकश्यप व होलिका तीन प्रमुख चरित्र हैं. कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस था, जिसके अत्याचार से लोग डरे हुए रहते थे.
इस राक्षस रूपी राजा को ब्रह्म देव द्वारा वरदान प्राप्त था. इस वरदान में कहा गया था कि हिरण्यकश्यप की मृत्यु न किसी इंसान द्वारा होगी, न उसे कोई अस्त्र-शस्त्र से मार सकता है, न जानवर उसका कुछ बिगाड़ सकता है. इसके अलावा न तो वह घर के अंदर, न घर के बाहर, न दिन में, न रात में, न आकाश में और न ही धरती में उसकी मृत्यु होगी.
भगवान विष्णु का अनन्य भक्त प्रहलाद
इस वरदान की वजह से वो खुद को बेहद शक्तिशाली और अहंकारी समझने लगा था. अहंकार के कारण वो खुद को भगवान मानने लगा. वो लोगों से भगवान विष्णु की पूजा नहीं बल्कि अपनी पूजा करने के लिए कहता. प्रजा भी भय से उसकी पूजा करने लगी थी. लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था. वह हमेशा विष्णु की भक्ति में लीन रहता था, जो कि हिरण्यकश्यप को बिल्कुल पसंद नहीं था. लाख कोशिशों के बावजूद जह प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी तो हिरण्यकश्यप ने बेटे को ही मारने के लिए बहन होलिका के साथ योजना बनाई.
उसकी बहन होलिका को भी भगवान शिव से वरदान रूप में एक ऐसी चादर प्राप्त थी, जो उसके तन पर जब रहेगी होलिका को कोई जला नहीं सकता. इसलिए हिरण्यकश्यप ने होलिका से प्रहलाद को गोद में लेकर जलती आग में बैठने को कहा ताकि प्रहलाद जल जाए. लेकिन उसकी मनोकामना पूरी नहीं हुई क्योंकि होलिका की चादर तूफान में उड़ गई और होलिका जल कर राख हो गई. वहीं प्रहलाद विष्णु की कृपा से बच गया. तभी से होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाने लगा. इसीलिए होली के मौके पर समाज में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए होलिका दहन की परंपरा है. होलिका दहन का यह कार्यक्रम होली से एक दिन पहले किया जाता है.