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वट सावित्री व्रत कथा, पूजन विधि – Vat Savitri Purnima Vrat

भारत में व्रत और त्योहारों की अपनी विशेष महत्ता है. यहां प्राचीनकाल से ही हर महीने कोई न कोई त्योहार मनाने की परंपरा रही है. इन्हीं में से एक है वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Purnima Vrat). सौभाग्यवती महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री व्रत मनाती हैं. जिसमें वट (बरगद) के पेड़ की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि से अमावस्या तक और दक्षिण भारत में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष से इन्हीं तिथियों में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यता है कि पतिव्रता सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान की रक्षा की थी.

ऐसे करें पूजन – Vat Savitri Purnima Vrat

पूजा के लिए पहले पूजन सांमग्री की तैयारी कर लें. जैसे पूजन सामग्री में बांस का पंखा, लाल या पीला धागा, चना, धूपबत्ती, फूल, कोई भी पांच फल, सिंदूर, जल से भरा पात्र व लाल कपड़ा का होना आवश्यक है.

अब सुबह उठकर नहाने के बाद नए वस्त्र पहनकर 16 शृंगार करें. इसके बाद पूजन सामग्री को एक थाली या डलिया में सजा कर रख लें. अब वट (बरगद) वृक्ष के नीचे सफाई करने के बाद पूजा सामग्री रखकर स्थान ग्रहण करें. पहले सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को वहां स्थापित करें. अब धूप, दीप, रोली, सिंदूर, भिगोए चने आदि से पूजन करें. इसके बाद लाल कपड़ा व फल अर्पित करें. फिर बांस के पंखे से सावित्री व सत्यवान की मूर्ति को हवा करें.

बरगद के एक पत्ते को अपने बालों में लगाएं. इसके बाद अब लाल या पीले धागे को पेड़ में लपेटते हुए 5, 11, 21, 51 या 108 बार बरगद की परिक्रमा करें. अंत में पंडित से सावित्री-सत्यवान की कथा सुनने के बाद उन्हें यथासंभव दक्षिणा प्रदान करें. अगर पंडित नहीं हो तो खुद भी कथा पढ़ सकती हैं. अब पूजा करके घर लौटने के बाद उसी पंखे से अपने पति को हवा करें और उनसे आशीर्वाद लें.अब प्रसाद में चढ़े फल को ग्रहण करें व शाम को मीठा भोजन करें.

वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा – Vat Savitri Purnima Vrat

वट सावित्री व्रत को लेकर पौराणिक मान्यता है कि भद्र देश के राजा अश्वपति का कोई संतान नहीं था. संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने कई वर्षों तक तप किया जिससे प्रसन्न हो देवी सावित्री ने प्रकट होकर उन्हें पुत्री का वरदान दिया. अब राजा को पुत्री प्राप्त हुई और उसका नाम भी सावित्री ही रखा गया.

सभी गुणों से संपन्न सावित्री के लिए योग्य वर नहीं मिलने पर उनके पिता दुःखी रहने लगे. एक बार उन्होंनें सावित्री को स्वयं वर ढ़ूंढ़ने भेजा. सावित्री एक वन में पहुंची जहां उनकी भेंट साल्व देश के राजा द्युमत्सेन से होती है. द्युमत्सेन का राज्य छीन जाने की वजह से वे उसी तपोवन में रहते थे. सावित्री ने उनके पुत्र सत्यवान को पति के रूप में वरण किया.

ऋषिराज नारद को इसकी जानकारी मिलते हीं उन्होंने राजा अश्वपति से कहा कि सावित्री ने वर खोजने में भूल की है. क्योंकि सत्यवान गुणवान व धर्मात्मा तो है लेकिन वो अल्पायु भी है. एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी. यह सुनते ही सावित्री के पिता के होश उड़ गए. उन्होंनें बेटी से अन्य वर ढ़ूंढ़ने की सलाह दी. लेकिन सावित्री ने कहा कि पिताजी आर्य कन्याएं अपने पति का वरण एक बार ही करती हैं और कन्यादान भी एक बार ही किया जाता है. अब कुछ भी हो मैं सत्यवान को वर रूप में स्वीकार कर चुकी हूं.

फिर दोनों का विधि-विधान के साथ पाणिग्रहण संस्कार किया गया. जब सावित्री पता चला कि पति की मृत्यु का दिन नजदीक आ गया है तब उसने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया. नारद जी द्वारा कही हुई तिथि पर पितरों का पूजन किया. रोजाना की भांति सत्यवान उस दिन भी समय पर लकड़ी काटने के लिए निकल गया. सावित्री भी पति के साथ जंगल में चलने के लिए तैयार हो गई़.

यमराज ने दिया आशीर्वाद – Vat Savitri Purnima Vrat

जंगल में सत्यवान के सिर में असहनीय पीड़ा उठी तो सावित्री अपना भविष्य समझ गई. उसने अपनी गोद का सिरहाना बनाकर पति को लिटा लिया. उसी समय दक्षिण दिशा से महिषारुढ़ यमराज आए और सत्यवान के जीवन को लेकर चल दिए. सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी. यमराज ने उसे समझाया लेकिन वो नहीं मानी, तब यमराज ने सावित्री से वर मांगने को कहा.

सावित्री बोली “मेरे अंधे सास-ससुर को दिव्य ज्योति प्रदान करें.” यमराज ने वरदान दे दिया. सावित्री फिर भी पीछे-पीछे चल रही थी तो यमराज ने एक और वर मांगने को कहा. सावित्री बोली मेरे सास-ससुर का छीना हुआ राज्य वापस मिल जाए. यह वर देकर भी यमराज ने उसे लौटने को कहा लेकिन वो नहीं मानी.

फिर यमराज ने कहा कि पति के प्राणों के अलावा कुछ भी मांगों और वापस लौट जाओ. इस बार सावित्री ने स्वयं को 100 पुत्रों की मां होने का वरदान मांगा और यमराज ने तथास्तु कहा. फिर भी सावित्री ने उसका पीछा नहीं छोड़ा, तब यमराज नाराज हो जाते हैं. तब सावित्री उन्हें नमन करते हुए कहती है, “आपने मुझे सौ पुत्रों की मां बनने का आशीर्वाद तो दे दिया लेकिन बिना पति के मैं मां कैसे बन सकती हूं.

अंत में यमराज ने पतिव्रता सावित्री के पति सत्यवान के प्राण अपने पाश से मुक्त कर दिया. सावित्री पति के प्राण लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची और सत्यवान जीवित हो गए. दोनों खुश होकर अपनी राजधानी की ओर निकले. वहां जाकर देखा कि उनके माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है. सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे.