देवी दुर्गा के 9 रहस्यमयी अलौकिक स्वरूप
1. शैलपुत्री : नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है. पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण माता का यह रूप शैलपुत्री कहलाता है. किसी भी महिला का पहला परिचय उसके पिता से होता है. इस रूप के माध्यम से देवी यही बताना चाहती हैं. अपने माता-पिता के द्वारा परवरिश के दौरान ही जीवन के लिए महत्वपूर्ण सीख हम पाते हैं.
2. ब्रह्मचारिणी : माता पार्वती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में पाया था. उन्होंने इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन किया था. इस रूप के माध्यम से भगवती सन्देश देना चाहती हैं कि किसी भी स्त्री या पुरुष को विवाह से पहले ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। पिता के यहां रहते हुए जीवन बेहद संतुलित हो, इसका ध्यान रखना चाहिए।
3. चंद्रघंटा : माता का यह तीसरा स्वरूप है जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है. आप जानते हैं कि भगवान शिव मस्तक पर चन्द्रमा धारण किए हुए हैं. विवाह के बाद स्त्री को पति के रंग में रंग जाना होता है. इसलिए माता ने भी मस्तक पर चन्द्रमा को धारण कर चंद्रघंटा रूप लेती हैं.
4. कूष्मांडा : भगवती को जगतजननी कहा जाता है क्योंकि उनमें ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति है. इसलिए देवी के चौथे स्वरूप को कूष्मांडा के रूप में जाना जाता है. कोई भी महिला जब गर्भवती होती है तो अपने आप में सृष्टि रच रही होती है. सृजनशीलता की शक्ति के कारण माता को कूष्मांडा के रूप में पूजा जाता है.
माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है
5. स्कंदमाता : शक्तिस्वरूपा माता जब संतान को जन्म देती हैं तो उनकी पहचान उनकी संतान से होता है. माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है. इस कारण से स्कंदमाता के रूप में इनकी स्तुति की जाती है. किसी भी महिला के लिए मां बनने से बड़ा सुख और कुछ नहीं होता है.
6. कात्यायनी : जब जीवन में जिम्मेदारी बढ़ती है तो कड़े संघर्ष शुरू हो जाते हैं. माता पार्वती को जब अपने पिता के यहाँ पति शिव के लिए अपमान का बोध होता है तो वे यज्ञ में कूदकर जान दे देती हैं. इसके बाद महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर वे पुत्री रूप में उनके यहाँ जन्म लेती हैं. इसलिए माता की आराधना कात्यायनी के रूप में किया जाता है. माता के इस रूप के माध्यम से सन्देश मिलता है कि संघर्ष से उबरने के बाद व्यक्ति को एक तरह से नया जीवन मिलता है.
7. कालरात्रि : प्रत्येक महिला संघर्ष और संकटों के साथ अपने घर-गृहस्थी के लिए हमेशा प्रस्तुत रहती है. उसको बढ़ाने और रक्षा के लिए सभी प्रयास करती है. अपने पति और संतान को सही मार्ग दिखाती है. देवी के इस स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है.
कड़े संघर्ष के बाद माता ‘महागौरी’ स्वरूप में आती हैं
8. महागौरी : कड़े संघर्ष के बाद माता का रूप मंद पड़ जाता है. भगवान शिव इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से धोकर प्रभावान बना देते हैं. फिर माता का रूप तेजयुक्त हो जाता है. देवी के इसी रूप को महागौरी के नाम से जाना जाता है. इस समय कोई भी महिला व्रत, उपवास और धर्म के कार्य करती हैं.
9. सिद्धिदात्री : देवी का नौवां रूप सिद्धिदात्री है जो कि अपने भक्तों पर सहाय रहती हैं. जिस प्रकार घर के सभी लोग माता से आशीर्वाद लेते रहते हैं उसी प्रकार यह किसी भी महिला के जीवन का वो दौर होता है जब पूरा परिवार भरा-पूरा होता है. वे बच्चों पर अपना पूरा प्यार लुटाती हैं.
हमने देखा कि कैसे किसी भी महिला के जीवन में जो दौर आता है उससे जुड़ा हुआ है नवरात्र का पर्व. भारतीय संस्कृति में जीवन को सेलिब्रेट करने और उसे सही से समझने के लिए ही पर्व का विधान है. अगर हम इसके सही अर्थ को समझते हुए जीवन में उतारते हैं तो हम बेहतर इंसान बनने की दिशा में बढ़ सकते हैं.